चार धर्मशास्त्र में जन्माष्टमी का विशेष वर्णन, जानें इस बार कब मनाया जाएगा कृष्ण जन्मोत्सव

    भाई और बहन के त्योहार रक्षाबंधन के बाद अब सभी को बेसब्री से जन्मअष्टमी का इंतजार है. सनातन धर्म में जन्मअष्टमी का विशेष महत्व तो होता है ही. साथ ही इसे बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है. धर्मशास्त्रों की अगर बात करें तो धर्मशास्त्रों में चार ऐसे शास्त्र हैं जिनका बहुत अधिक महत्व होता है

    चार धर्मशास्त्र में जन्माष्टमी का विशेष वर्णन, जानें इस बार कब मनाया जाएगा कृष्ण जन्मोत्सव
    चार धर्मशास्त्र में जन्माष्टमी का विशेष वर्णन, जानें इस बार कब मनाया जाएगा कृष्ण जन्मोत्सव- फोटोः सोशल मीडिया

    Janmashtami 2024

    नई दिल्लीः भाई और बहन के त्योहार रक्षाबंधन के बाद अब सभी को बेसब्री से जन्माष्टमी का इंतजार है. सनातन धर्म में जन्मअष्टमी का विशेष महत्व तो होता है ही. साथ ही इसे बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है. धर्मशास्त्रों की अगर बात करें तो धर्मशास्त्रों में चार ऐसे शास्त्र हैं जिनका बहुत अधिक महत्व होता है.  पहला महारात्रि जिसे शिवरात्री के नाम से भी जाना जाता है. दूसरा कालरात्री जिसे दिपावली के नाम से जाना जाता है. तीसरा अहोरात्रि जिसे होली के नाम से जाना जाता है. चौथा मोहरात्रि जिसे श्री कृष्ण जन्मअष्टमी के नाम से जाना जाता है.

    कई कथाएं प्रसिद्ध

    कई मान्यताएं कई कथाएं श्री कृष्ण भगवान से जुड़ी प्रसिद्ध हैं. इनमें एक कथा ऐसी है जिसमें भगवान के जन्म का वर्णन किया गया है.  जब  भगवान कृष्ण के जन्म के संयोग मात्र से ही बंदीगृह के सभी स्वतः ही खुल गए, सभी पहरेदार घोर निद्रा में चले गए थे. मां यमुना जिनके चरण स्पर्श करने को आतुर हो उठीं, ऐसे भगवान श्रीकृष्ण को मोह लेने वाला अवतार माना गया है.

    विशेष लाभ की होती है प्राप्ति

    हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी की तिथि को ही भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. इस दिन को भारी उमंग के  साथ मनाया जाता है. मान्यताएं है कि इस विशेष दिन पर रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण की उपासना से जातक को विशेष लाभ की प्राप्ति होती है.

    कब है जन्मअष्टमी?

    हर साल की तरह इस साल भी जन्माष्टमी का त्योहार बड़े धूम-धाम के साथ मनाया जाने वाला है. ऐसे में अब इस दिन का इंतजार किया जा रहा है कि आखिर कब इस त्योहार को मनाया जाए. अगर आपको भी बेसब्री से इंतजार है तो बता दें कि इस वर्ष 26 अगस्त 2024 को श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाने वाली है. इस दिन पर लोग शालिग्राम, लड्डू गोपाल के रूप में भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं. कुछ जातक इस दिन व्रत उपवास रखकर श्रीकृष्ण से अपनी मनकामनाएं पूर्ण करने के लिए प्रार्थना करते हैं.

    भगवान को लगाया जाता है छप्पन भोग

    छप्पन भोग... इसे कई बार आपने सुना होगा. भगवान श्री कृष्ण को भी जन्मअष्टमी पर छप्पन भोग का प्रसाद भोग लगाया जाता है. अब छप्पन भोग ही क्यों? अगर आप ऐसा सोच रहे हैं तो बता दें कि इससे जुड़ी दो कथाएं हैं. जिसे यदि आप जानेंगे तो आपको मालूम होगा कि आखिर भगवान को प्रसाद में छप्पन व्यंजनों का ही भोग क्यों चढ़ता है.

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    गोपियों की इच्छाएं की थी पूरी

    प्रसिद्ध कथाओं में एक कथा जिसमें श्रीकृष्ण को छप्पन भोग के व्यंजनों का जिक्र किया गया है. दरअसल एक बार की बात है. जब गोकुल पुरी की गोपियां भगवान श्रीकृष्ण को अपने पति के रूप में पाने के लिए एक माह तक लगातार यमुना नदी में स्नान करने जाती थी. साथ ही मां कात्यायनी की भी पूजा अर्चना किया करती थीं. ऐसा इसलिए ताकी वह भगवान श्री कृष्ण को अपने पति के रूप में पा सके. अब जब यह बात भगवान श्री कृष्ण को पता चली तब उन्होंने सभी गोपियों को उनके इच्छा की पूर्ती का आश्वासन दे दिया. अब जब श्री कृष्ण ने गोपियों को उनके द्वारा मांगी हुई इच्छा को पूरा किया तो गोपियों ने भी उनके लिए कुछ अलग करने का सोचा. तब गोपियों ने श्री कृष्ण के लिए अलग-अलग प्राकर के व्यंजवन बनाएं. तभी से भगवान कृष्ण को 56 भोग लगाने की प्रथा चलती हुई आ रही है.

    इंद्र द्रेव हुए थे गांववासियों से कुपित

    अब आपने इस कथा को तो आवश्य सुना ही होगा. नहीं भी सुना तो कोई बात नहीं. प्रसिद्ध कथा और उसकी मान्यताओं के अनुसार एक बार की बात है. जब मां यशोदा अपने बाल गोपाल को आठों पहर यानी दिन में 8 बार भोजन कराती थीं. एक बार गांव में गोवर्धन पर्वत की पूजा हुई. गाव वालों द्वारा पर्वत की पूजा करवाए जाने पर देवराज इंद्र गांववासियों के खूब नाराज हुए थे. इस नाराजगी में उन्होंने खूब वर्षा की. तब तक वर्षा हुई की जब तक बृजवासी माफी मांगने पर मजबूर न हो जाए. बृजवासियों को मुश्किलों में पड़ता देख श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया. सभी बृज वासियों को इसी पर्वत के नीचे आने को कहा. बता दें कि 7 दिन तक श्री कृष्ण ने गोवरधन पर्वत को उठाए रखा था. इस दौरान इंद्रदेव को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने अपनी भूल स्वीकारते हुए माफी मांगी.  अब जब वर्षा रुकी थी तो मां यशोदा ने गांववासियों के साथ में मिलकर 7 दिनों के हिसाब से 8 पहर के 56 भोग भगवान श्री कृष्ण के लिए तैयार किए थे. इसीलिए पूजा में भी कृष्णभगवान को 56 व्यंजनों का भोग लगाया जाता है.

    डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है. इस लेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए भारत 24  उत्तरदायी नहीं है.

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