अमेरिका से यूरेनियम और फ्रांस से डिजाइन की चोरी... इजरायल ने कैसे बनाया परमाणु बम, जानें बेगिन सिद्धांत

    इजरायल आज भले ही आधिकारिक रूप से खुद को परमाणु शक्ति नहीं मानता, लेकिन दुनियाभर के रक्षा विशेषज्ञ और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं यह मान चुकी हैं कि यह देश गुप्त रूप से एक मजबूत परमाणु हथियार भंडार रखता है.

    How did Israel make the atomic bomb What is Begin Doctrine
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- FreePik

    तेल अवीव: इजरायल आज भले ही आधिकारिक रूप से खुद को परमाणु शक्ति नहीं मानता, लेकिन दुनियाभर के रक्षा विशेषज्ञ और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं यह मान चुकी हैं कि यह देश गुप्त रूप से एक मजबूत परमाणु हथियार भंडार रखता है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की ईयरबुक 2025 के अनुसार, इजरायल के पास करीब 90 परमाणु हथियार हैं.

    परमाणु हथियारों को लेकर इजरायल की नीति अत्यधिक गोपनीय रही है. जहां एक ओर यह खुद एक परमाणु शक्ति है, वहीं दूसरी ओर यह किसी भी मध्य पूर्वी देश को परमाणु शक्ति बनने से रोकने की नीति पर वर्षों से काम कर रहा है. यही रणनीति "बेगिन सिद्धांत" के रूप में जानी जाती है, जिसका पालन करते हुए इजरायल ने इराक, सीरिया और ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को बार-बार निशाना बनाया.

    क्या है बेगिन सिद्धांत?

    1981 में इजरायल ने इराक के ओसिरक परमाणु रिएक्टर पर हवाई हमला कर उसे ध्वस्त कर दिया. इस सैन्य कार्रवाई को "ऑपरेशन ओपेरा" कहा गया. इसके साथ ही तत्कालीन प्रधानमंत्री मेनाचेम बेगिन ने यह स्पष्ट किया कि इजरायल किसी भी पड़ोसी देश को परमाणु शक्ति नहीं बनने देगा – यही है ‘बेगिन सिद्धांत’.

    2007 में सीरिया के अल-किबर रिएक्टर पर ‘ऑपरेशन ऑर्चर्ड’ और 2010 के बाद ईरान के खिलाफ किए गए साइबर और हवाई हमलों ने इस सिद्धांत को और भी स्पष्ट किया. स्टक्सनेट वायरस के माध्यम से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को डिजिटल तरीके से नुकसान पहुंचाना इस नीति का हिस्सा था.

    इजरायल ने कैसे शुरू किया परमाणु कार्यक्रम?

    इजरायल का परमाणु कार्यक्रम 1948 में ही आकार लेने लगा था, जब देश की स्थापना हुई. पहले प्रधानमंत्री डेविड बेन-गुरियन ने जल्द ही यह महसूस किया कि एक छोटे से देश के लिए दीर्घकालिक सुरक्षा केवल परमाणु हथियारों से ही सुनिश्चित की जा सकती है. उनके अनुसार, यह भविष्य में किसी भी बड़े नरसंहार को रोकने की "अंतिम गारंटी" होगी.

    1952 में इजरायली एटॉमिक एनर्जी कमीशन (IAEC) की स्थापना हुई. हालांकि, उस वक्त इजरायल के पास तकनीक, वैज्ञानिक संसाधन और यूरेनियम जैसे कच्चे माल की भारी कमी थी. यही कारण था कि उसने दो रणनीतियों को अपनाया – अंतरराष्ट्रीय सहयोग और गुप्त अधिग्रहण.

    फ्रांस: शुरुआती मददगार

    1950 के दशक के मध्य में फ्रांस और इजरायल के रिश्ते बेहद मजबूत थे, खासकर 1956 के स्वेज संकट के दौरान दोनों देशों की सैन्य साझेदारी के कारण. इसी दौरान फ्रांस ने इजरायल को डिमोना में एक 24-मेगावाट के शोध रिएक्टर के निर्माण में मदद की.

    इजरायल को न केवल तकनीकी विशेषज्ञता मिली, बल्कि प्लूटोनियम रिऐक्टर डिजाइन और उसके पुनः प्रसंस्करण की प्रक्रिया भी फ्रांस से हासिल हुई. इस रिएक्टर की आधिकारिक घोषणा तो कभी नहीं हुई, लेकिन अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को इसकी जानकारी वर्षों बाद मिली.

    अमेरिका-यूरोप से तकनीक और यूरेनियम की चोरी

    1958 में जब चार्ल्स डी गॉल फ्रांस के राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने इजरायल के साथ परमाणु सहयोग पर रोक लगा दी. इसके बाद इजरायल ने जासूसी और गुप्त नेटवर्क की मदद से पश्चिमी देशों से जरूरी तकनीक और सामग्री हासिल करनी शुरू की.

    इजरायल ने अमेरिका और यूरोप में अपने समर्थक यहूदी वैज्ञानिकों के नेटवर्क का उपयोग किया, जिनके माध्यम से उसने क्लासिफाइड परमाणु डेटा और डिजाइन की जानकारी जुटाई. अमेरिकी पत्रकार सीमोर हर्श की किताब The Samson Option में इन गतिविधियों का विस्तार से वर्णन है.

    NUMEC स्कैंडल: अमेरिका से यूरेनियम की चोरी

    इजरायल की परमाणु महत्वाकांक्षाओं की सबसे रहस्यमय घटनाओं में से एक है NUMEC स्कैंडल. 1960 के दशक में पेंसिल्वेनिया स्थित Nuclear Materials and Equipment Corporation (NUMEC) से 200 से 600 पाउंड तक Highly Enriched Uranium (HEU) रहस्यमय तरीके से गायब हो गया.

    FBI और CIA की डीक्लासिफाइड रिपोर्टों और 2014 में बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स में प्रकाशित दस्तावेजों से संकेत मिलता है कि इस चोरी में इजरायल की भूमिका थी, और संभवतः NUMEC के संस्थापक ज़ाल्मन शापिरो की सहमति भी इसमें शामिल थी.

    मुखौटा कंपनियों से वैश्विक खरीद

    इजरायल ने संवेदनशील सामग्री को प्राप्त करने के लिए कई मुखौटा कंपनियों का भी इस्तेमाल किया. इनमें से एक थी Materials and Equipment Export Corporation, जो नागरिक उद्देश्यों के लिए बनी एक कंपनी के रूप में पंजीकृत थी, लेकिन उसका असली काम था ड्यूल-यूज़ टेक्नोलॉजी (नागरिक और सैन्य दोनों में प्रयोग योग्य तकनीक) को डिमोना भेजना.

    इन कंपनियों ने अंतर्राष्ट्रीय जांच से बचने के लिए अपना नेटवर्क यूरोप और अमेरिका में फैलाया, और निर्यात नियंत्रण नियमों को दरकिनार करते हुए इजरायल के परमाणु कार्यक्रम को मजबूत किया.

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