नई दिल्ली : योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने भारत के बढ़ते राजकोषीय घाटे पर चिंता जताते हुए कहा है कि यह बाकी विकासशील देशों की तुलना में बहुत अधिक है और निजी निवेश में बाधा डाल रहा है.
अहलूवालिया ने अर्थव्यवस्था को अपनी विकास महत्वाकांक्षाओं पाने में सक्षम बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए सरकार द्वारा स्पष्ट रोडमैप बनाने की तुरंत आवश्यकता पर जोर दिया.
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अहलूवालिया ने साफ रोडमैप बनाने को कहा
उन्होंने राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए साफ रोडमैप की आवश्यकता पर जोर दिया.
सरकार के राजकोषीय लक्ष्यों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "वित्त मंत्री ने आने वाले वर्ष के लिए 4.5 प्रतिशत का लक्ष्य रखा है, लेकिन ऋण-से-जीडीपी अनुपात को काफी हद तक कम करने के लिए, जैसा कि शुरू में योजना बनाई गई थी, और भी अधिक कटौती की आवश्यकता होगी. मुझे यकीन नहीं है कि सरकार की इस मोर्चे पर क्या योजना है."
उन्होंने कहा, "भारत का राजकोषीय घाटा अन्य विकासशील देशों की तुलना में काफी अधिक है, जो निजी निवेश से संसाधनों को छीनता है."
केंद्र और राज्यों को मिलाकर 8 प्रतिशत होने का अनुमान
केंद्र और राज्य के राजकोषीय घाटे को मिलाकर, कुल घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 8 प्रतिशत के करीब होने का अनुमान है, जो अन्य विकासशील देशों के मुकाबले दोगुना से भी अधिक है.
उन्होंने कहा, "इसलिए यदि आप निजी निवेश-आधारित अर्थव्यवस्था चाहते हैं, तो मुझे लगता है कि यही एकमात्र तरीका है जिससे आप 8 प्रतिशत की वृद्धि हासिल कर सकते हैं. आपको राजकोषीय घाटे में कटौती करनी होगी. यह केवल केंद्र का घाटा नहीं है. ज्यादातर लोग केंद्र के बारे में बात करते हैं. यह राज्यों का राजकोषीय घाटा भी है. और राज्य उच्च राजकोषीय घाटे में चल रहे हैं."
अहलूवालिया ने बताया कि राज्य सरकारें अक्सर सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की आड़ में उधार लेकर अपने घाटे को छुपाती हैं, जिससे राजकोषीय बोझ बढ़ता है.
अहलूवालिया ने राज्य व्यय, विशेष रूप से राजनीतिक रूप से प्रेरित मुफ्त उपहार और सब्सिडी की समीक्षा का भी आह्वान किया.
यह स्वीकार करते हुए कि कुछ व्यय आवश्यक हैं, उन्होंने कम महत्वपूर्ण क्षेत्रों से अधिक उत्पादक उपयोगों के लिए धन का रिडिस्ट्रीब्यूशन का सुझाव दिया.
उन्होंने उर्वरक सब्सिडी की आलोचना की
उदाहरण के लिए, उन्होंने उर्वरक सब्सिडी की आलोचना करते हुए तर्क दिया कि इससे किसानों की तुलना में उर्वरक उद्योग को अधिक लाभ होता है, जबकि उर्वरक का ज्यादा इस्तेमाल मिट्टी के सेहत को नुकसान पहुंचाता है.
उन्होंने कहा, "मेरा मतलब है कि उदाहरण के लिए बहुत से अर्थशास्त्री आपको बताएंगे कि आज हम उर्वरक सब्सिडी पर जितना पैसा खर्च कर रहे हैं, वह केवल उर्वरक उद्योग की मदद कर रहा है. जहां तक किसानों का सवाल है, उर्वरक का बहुत ज्यादा इस्तेमाल केवल मिट्टी को नुकसान पहुंचा रहा है."
विकास दर 8-10 प्रतिशत बढ़ाने की जरूरत बताई
भारत की आर्थिक वृद्धि पर, उन्होंने कहा कि वर्तमान विकास दर 6.5 प्रतिशत के आसपास है, जबकि अंतरराष्ट्रीय पूर्वानुमान इसी तरह की भविष्यवाणी कर रहे हैं. हालांकि, भारत को 2047 तक अपने "विकसित भारत" विजन को प्राप्त करने और मध्यम आय वाले देश से उच्च आय वाले देश में बदलने के लिए, विकास दर को 8-10 प्रतिशत तक बढ़ाने की आवश्यकता है.
उन्होंने सरकार से इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए रणनीतियों की रूपरेखा तैयार करने और उन्हें लागू करने का आग्रह किया. अहलूवालिया की टिप्पणी भारत को निरंतर उच्च विकास की ओर ले जाने के लिए राजकोषीय विवेक और रणनीतिक आर्थिक योजना की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है.
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