नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कुलपति और अन्य संबंधित प्रतिवादियों को दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनावों में 50 प्रतिशत महिला आरक्षण लागू करने की मांग करने वाले एप्लिकेशन पर विचार करने का निर्देश दिया. याचिका में स्टूडेंट गवर्नेंस में लैंगिक समानता की जरूरत पर जोर दिया गया है.
न्यायमूर्ति मनमोहन की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला भी शामिल थे, ने अधिकारियों को कानून के अनुसार, अधिमानतः तीन सप्ताह के भीतर याचिका पर निर्णय लेने का निर्देश दिया है.
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छात्राओं का एक निश्चित प्रतिशत तय करने की मांग
दिल्ली विश्वविद्यालय की एक महिला छात्रा ने भी स्टूडेंट गवर्नेंस में लैंगिक समानता बढ़ाने के उद्देश्य से महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों का एक निश्चित प्रतिशत आवंटित करने के लिए अदालत के निर्देश की मांग की है.
दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर याचिका में केंद्र सरकार, यूजीसी और दिल्ली विश्वविद्यालय को दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव (DUSU) और कॉलेज छात्र संघ चुनावों में छात्राओं के लिए 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने के निर्देश देने की मांग की गई है.
नारी शक्ति वंदन अधिनियम को लेकर बढ़ी इसकी मांग
याचिका में कहा गया है कि हाल ही में संसद द्वारा नारी शक्ति वंदन अधिनियम के तहत राज्य विधानसभा और संसद चुनावों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण पारित किए जाने के बाद, दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्र चुनावों में छात्राओं के लिए समान प्रतिनिधित्व और भागीदारी सुनिश्चित करना समय की मांग है.
याचिका में छात्र प्रशासन में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त महिला आरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया गया है. इसमें आगे कहा गया है कि हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) चुनावों के संबंध में एक अधिसूचना जारी की गई थी, जिसके बाद नामांकन प्रक्रिया 17 सितंबर, 2024 को शुरू होने वाली है और चुनाव की तारीख 27 सितंबर, 2024 तय की गई है.
'आजादी के 75 साल बाद भी आधी आबादी को हक नहीं मिला'
याचिकाकर्ता शबाना हुसैन, दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा ने अधिवक्ता आशु भिदुरी के जरिए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और अपनी चिंता जाहिर की है कि आजादी के 75 साल बाद भी, आधी आबादी वाली महिलाओं को अभी भी सामाजिक भेदभाव के कारण महत्वपूर्ण चुनौतियों और शोषण का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बीआर अंबेडकर द्वारा तैयार किया गया संविधान महिलाओं के लिए समानता और भागीदारी की गारंटी देता है, और इस पुरुष-प्रधान समाज में महिलाओं के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व के महत्व पर जोर दिया ताकि वास्तविक सशक्तीकरण सुनिश्चित हो सके.
शबाना ने आगे बताया कि वह पिछले दो सालों से दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनावों में महिला आरक्षण की वकालत कर रही हैं. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि छात्रसंघ चुनाव धन और बाहुबल से काफी प्रभावित होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं की भागीदारी बहुत कम होती है.
इन चिंताओं के मद्देनजर, उन्होंने आगामी छात्र संघ चुनावों में आरक्षण के माध्यम से महिलाओं के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है.
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