200 KM दूर से ही दिख जाएगा दुश्मन, फिर 'ब्रह्मास्त्र' करेगा 'सर्वनाश'; राफेल से भी खतरनाक है ये फाइटर जेट

    भारत अब पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट विकसित करने की दिशा में भी बढ़ रहा है. हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के S-400 सिस्टम और स्वदेशी आकाश एयर डिफेंस सिस्टम ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया.

    Brahmos will destroy enemy this fighter jet more dangerous than Rafale
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    किसी भी देश की सुरक्षा उसकी सैन्य ताकत पर निर्भर करती है, जिसमें आर्मी, नेवी और एयरफोर्स की भूमिका अहम होती है. जब इन तीनों अंगों में आधुनिक तकनीक और युद्ध क्षमता होती है, तो वह देश न सिर्फ दुश्मनों के लिए खतरनाक बनता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर उसकी प्रतिष्ठा और ताकत भी बढ़ जाती है. अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों के पास न केवल मजबूत आर्थिक ढांचा है, बल्कि उनका रक्षा तंत्र भी अत्याधुनिक है. भारत अब एक प्रमुख आर्थिक ताकत बन चुका है और इसका असर देश के रक्षा तंत्र पर भी स्पष्ट रूप से दिखता है.

    भारत अब पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट विकसित करने की दिशा में भी बढ़ रहा है. हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के S-400 सिस्टम और स्वदेशी आकाश एयर डिफेंस सिस्टम ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया, जबकि ब्रह्मोस मिसाइल की क्षमता ने भी दुनिया को चौंका दिया. इसके साथ ही भारतीय एयरफोर्स के महत्व को भी और अधिक माना गया. हालांकि, कुछ खामियों के कारण सरकार ने रक्षा क्षेत्र में सुधार की दिशा में कदम बढ़ाए हैं.

    फाइटर जेट्स की कमी और इसके समाधान की दिशा

    वर्तमान में भारतीय वायुसेना के पास 31 फाइटर स्क्वाड्रन हैं, जबकि इसके लिए 41 स्क्वाड्रन की आवश्यकता है. इस कमी को पूरा करने के लिए भारतीय सरकार ने नए विमान खरीदने के साथ-साथ स्वदेशी तकनीक से लड़ाकू विमानों के निर्माण की प्रक्रिया को भी तेज़ किया है. इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण परियोजना तेजस Mk-2 है, जिसे भारतीय वायुसेना की जरूरतों के हिसाब से अपग्रेड किया जा रहा है.

    तेजस Mk-2: स्वदेशी ताकत का नया आयाम

    तेजस Mk-2, तेजस Mk-1A का एक उन्नत वर्शन है. यह नेक्स्ट जेनरेशन फाइटर जेट है, जिसे भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा मिलकर विकसित किया जा रहा है. तेजस Mk-2 की तकनीक, पेलोड क्षमता, रडार, और मिसाइल इंटीग्रेशन के मामले में इसे राफेल जैसे बहु-भूमिका एयरक्राफ्ट से भी अधिक सक्षम माना जा रहा है.

    इंजन, वजन और गति में किफायती बढ़त

    तेजस Mk-2 में अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक द्वारा निर्मित F414-INS6 इंजन का उपयोग किया जाएगा, जो 98 kN (किलो न्‍यूटन) थ्रस्‍ट उत्पन्न करने में सक्षम है. तुलना करें तो राफेल के इंजन से यह इंजन कहीं ज्यादा थ्रस्ट उत्पन्न करता है. तेजस Mk-2 का वजन भी राफेल से हल्का होगा, जो उसे ज्यादा तेज और मोबाइल बनाता है.

    तेजस Mk-2 के वेपन सिस्टम

    तेजस Mk-2 को अत्याधुनिक वेपन सिस्टम से लैस किया जाएगा, जिसमें भारत की सबसे घातक मिसाइल जैसे ब्रह्मोस को आसानी से इंटीग्रेट किया जा सकेगा. ब्रह्मोस मिसाइल की अगले जेनरेशन की क्षमता तेजस Mk-2 में होगा, जिससे भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी. इसके अलावा, तेजस Mk-2 को AESA रडार सिस्टम से लैस किया जाएगा, जो 200 किलोमीटर दूर से भी टारगेट की पहचान करने में सक्षम होगा.

    मुकाबला रेंज और पेलोड क्षमता

    तेजस Mk-2 की पेलोड क्षमता 6,500 किलोग्राम तक होगी, जो इसे लंबी रेंज और अधिक खतरनाक बनाती है. इसके मुकाबला रेंज 2500 किलोमीटर तक होगा, जबकि राफेल की मुकाबला रेंज 1850 किलोमीटर तक सीमित है. यह तेजस Mk-2 को चीन और पाकिस्तान जैसे देशों से निपटने के लिए अधिक सक्षम बनाता है.

    भारत के लिए स्वदेशी तकनीक का महत्व

    तेजस Mk-2 की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक से विकसित किया जा रहा है. इससे भारत को अन्य देशों से खरीदी गई तकनीकी समस्याओं से बचने में मदद मिलेगी. जैसे, जब ब्रिटेन से खरीदे गए F-35 विमान को भारत के केरल में इमरजेंसी लैंडिंग करानी पड़ी, तो उसे ठीक करने में ब्रिटिश इंजीनियरों को काफी मुश्किलें आईं.

    भारत के लिए स्वदेशी लड़ाकू विमान विकसित करने का महत्व अब पहले से कहीं ज्यादा बढ़ चुका है. तेजस Mk-2 को लेकर उम्मीद जताई जा रही है कि वह भविष्य में मिराज-2000 और जगुआर जैसे विमानों को रिप्लेस कर सकता है. यह भारतीय वायुसेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक बेहतरीन और किफायती विकल्प साबित हो सकता है.

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