1971 का युद्ध : जानें भारतीय नौसेना के गुमनाम नायकों की बहादुरी और उनकी रणनीति के किस्से

    1971 के युद्ध की कहानी केवल बंदूकों और मिसाइलों की नहीं है, बल्कि भारत के नौसैनिक नायकों की मजबूत इच्छाशक्ति और सामरिक कौशल की भी है.

    1971 का युद्ध : जानें भारतीय नौसेना के गुमनाम नायकों की बहादुरी और उनकी रणनीति के किस्से
    1971 के युद्ध के दौरान भारतीय नौसेना के समुद्री अभियान का कैरिकेचर | Photo- Bharat 24

    नई दिल्ली : इस साल भारत नौसेना दिवस मना रहा है. यह, 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय नौसेना की बहादुरी, बलिदान और रणनीतिक प्रतिभा दिखाने का एक सही अवसर है.

    उस समय सेना और वायु सेना ने लड़ाई में अपनी भूमिकाओं को लेकर बहुत ध्यान खींचा, नौसेना का योगदान जीत हासिल करने और भारत के समुद्री वर्चस्व को स्थापित करने में समान रूप से निर्णायक था. 1971 के युद्ध की कहानी केवल बंदूकों और मिसाइलों की नहीं है, बल्कि भारत के नौसैनिक नायकों की मजबूत इच्छाशक्ति और सामरिक कौशल की भी है.

    भारत 24 उन निडर योद्धाओं को श्रद्धांजलि देता है जिन्होंने खतरे में पड़कर यह तय किया कि हमारे देश के इतिहास के सबसे चुनौतीपूर्ण अध्यायों में से एक के दौरान भारत के समुद्र सुरक्षित रहें.

    ऑपरेशन ट्राइडेंट : नौसेना युद्ध का एक मास्टरस्ट्रोक

    4 दिसंबर, 1971 की रात को, भारतीय नौसेना ने कराची में पाकिस्तान के प्रमुख नौसैनिक अड्डे के खिलाफ ऑपरेशन ट्राइडेंट शुरू किया था. एक साहसिक रात के दौरान अभियान में, घातक स्टाइल्स मिसाइलों से लैस भारतीय नौकाओं ने कराची पर हमला किया, जिससे दुश्मन का बेस (अड्डा) जलकर राख हो गया.

    कराची के तेल भंडार, महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और कई पाकिस्तानी युद्धपोत नष्ट हो गए, जिससे पाकिस्तान की युद्ध करने की क्षमता को गहरा झटका लगा.

    इस विजयी अभियान के शीर्ष पर कमांडर बाबरू भान यादव थे, जिन्होंने अहम सटीकता के साथ ओसा-क्लास मिसाइल नौकाओं के एक स्क्वाड्रन को लीड किया. यह अभियान पहली बार था जब इस क्षेत्र में नौसैनिक युद्ध में मिसाइलों का इस्तेमाल किया गया था, और इसने भारत के नौसैनिक दबदबे के लिए मंच तैयार किया. यह मिशन एक शानदार सफलता थी, जिसमें कोई भी भारतीय हताहत नहीं हुआ- यह यादव की लीडरशिप और उनके लोगों द्वारा किए गए तेज कार्रवाई का प्रमाण है.

    ऑपरेशन ट्राइडेंट ने युद्ध की दिशा बदल दी, यह प्रदर्शित करते हुए कि भारतीय नौसेना ना केवल अपने जल की रक्षा करने में सक्षम थी, बल्कि दुश्मन के इलाके में भी अंदर तक हमला करने में सक्षम थी. इसे भारत के समुद्री इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में से एक के रूप में मनाया जाता है.

    लेफ्टिनेंट कमांडर विजय जेराथ का साहस

    ऑपरेशन ट्राइडेंट में एक प्रमुख व्यक्ति लेफ्टिनेंट कमांडर विजय जेराथ थे, जो आईएनएस निपात के कमांडिंग ऑफिसर थे, जो हमला करने वाली मिसाइल बोट में से एक थी. उनकी लीडरशिप में, आईएनएस निपात ने पाकिस्तान की नौसेना क्षमताओं को कमज़ोर करते हुए दो दुश्मन जहाजों- पीएनएस ख़ैबर और पीएनएस मुहाफ़िज़ को सफलतापूर्वक डुबो दिया. जेराथ की सटीक मिसाइल स्ट्राइक और दुश्मन की रक्षा को मात देने की क्षमता यह सुनिश्चित करने में अहम थी कि भारतीय नौसेना बिना किसी नुकसान के अपने मकसद को हासिल कर पाई.

    अपनी बहादुरी और कौशल के लिए, लेफ्टिनेंट कमांडर जेराथ को वीर चक्र से सम्मानित किया गया, और तब से उनका नाम नौसेना के साहस और सामरिक प्रतिभा का पर्याय बन गया है.

    INS विक्रांत : बंगाल की खाड़ी का संरक्षक

    जब ऑपरेशन ट्राइडेंट पश्चिम में सुर्खियां बटोर रहा था, पूर्व में, कैप्टन स्वराज प्रकाश की कमान में भारतीय नौसेना का आईएनएस विक्रांत समुद्री युद्ध के नियमों को फिर से लिख रहा था. भारत के पहले विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) को सप्लाई बंद करने और भारतीय सेना के अभियानों को समुद्र से मदद मिल सके, यह सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई.

    विमानवाहक पोत केसी हॉक लड़ाकू विमानों के बेड़े ने चटगांव, कॉक्स बाज़ार और खुलना समेत पूर्वी पाकिस्तान में प्रमुख सैन्य ठिकानों पर विनाशकारी हवाई हमले किए, जिससे पाकिस्तान का सैन्य बुनियादी ढांचा बुरी तरह से तहस-नहस हो गया. आईएनएस विक्रांत के मिशनों की सफलता ने पाकिस्तान को नौसैनिक नाकेबंदी करने पर मजबूर कर दिया, जिससे उनकी सप्लाई लाइनें कट गईं और ढाका का पतन तेज़ हो गया.

    इन अभियानों के दौरान कैप्टन स्वराज प्रकाश की लीडरशिप के लिए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया और आईएनएस विक्रांत भारत की बढ़ती नौसैनिक शक्ति का प्रतीक बना हुआ है.

    वाइस एडमिरल नीलकांत कृष्णन का रणनीतिक दिमाग

    1971 के युद्ध के पूर्वी क्षेत्र में, ज्यादातर रणनीतिक प्लान और उन्हें लागू करने की देखरेख वाइस एडमिरल नीलकांत कृष्णन के पास थी, जो पूर्वी नौसेना कमान के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ थे. कृष्णन की रणनीतिक दूरदर्शिता ने यह सुनिश्चित किया बंगाल की खाड़ी को दुश्मन की गतिविधियों से प्रभावी रूप से बंद किया जाए, जिससे एक नौसैनिक नाकेबंदी बन गई जिसने पूर्वी पाकिस्तान को अलग-थलग कर दिया और उसकी सेना को महत्वपूर्ण सप्लाई से वंचित कर दिया.

    उनकी कमान के तहत, भारतीय नौसेना बलों ने क्षेत्र पर नियंत्रण लागू करने के लिए मुक्ति वाहिनी और भारतीय सेना के साथ सहज समन्वय किया. युद्ध के दौरान उनकी लीडरशिप ने ना केवल पूर्वी कमान के ऑपरेशन को आकार दिया, बल्कि युद्ध-पश्चात भारत के नौसेना सिद्धांत का आधार भी तैयार किया.

    कमांडर एमएन सामंत ने मुक्ति वाहिनी को ताकतरव बनाया

    भारतीय नौसेना के ऑपरेशन के पर्दे के पीछे गुमनाम नायक कमांडर एमएन सामंत थे, जिन्होंने मुक्ति वाहिनी-बांग्लादेशी स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर काम किया. कमांडर सामंत ने मुक्ति वाहिनी की नौसेना की ब्रॉन्च के तौर पर ट्रेंड करने और सुसज्जित करने में अहम भूमिका निभाई, जिसने पूर्वी पाकिस्तान के जलमार्गों पर पाकिस्तानी ठिकानों पर गुरिल्ला हमले शुरू किए.

    भारतीय नौसेना और मुक्ति वाहिनी के बीच सहयोग एक गेम-चेंजर साबित हुआ, जिसने पाकिस्तानी सप्लाई मार्गों को रोका और उनकी पहले से ही अधिक तनावग्रस्त सेना को और कमजोर कर दिया.

    नौसैनिक ऑपरेशन की सफलता में कमांडर सामंत का योगदान अहम था.

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