मुंबई: मश्हूर सिंगर सोनू निगम ने अपने करियर में कई तरह के गानों में जैसे रोमांटिक, रॉक, भक्ति, ग़ज़ल और देशभक्ति के गीत से रिकॉर्ड हासिल किए हैं. उन्होंने आज तक हिंदी, ओडिया, बंगाली, अंग्रेजी, गुजराती, कन्नड़, मैथिली, भोजपुरी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, तमिल और तेलुगु में अपनी आवाज दी है. अपनी गायकी से लोगों के दिलों में राज करने वाले इस मश्हूर सिंगर का आज जन्म दिन है.
1973 हरियाणा में हुआ था सिंगर का जन्म
सोनू कुमार निगम का जन्म 30 जुलाई 1973 को हरियाणा के फरीदाबाद शहर में हुआ था. उनके पिता का नाम अगम कुमार निगम हैं जो आगरा से थे और उनकी माँ शोभा निगम गढ़वाल से थीं. उनकी दो बहनें हैं. मीनल निगम, एक योग चिकित्सक,और तीशा निगम, एक पेशेवर गायिका हैं.
4 साल की उम्र से की अपने करियर की शुरुआत
आपको बता दें कि सोनू निगम ने अपने करियर की शुरुआत चार साल की उम्र से की थी. महज चार साल की उम्र से उन्होंने संगीत की दुनिया को अपनाया. लेकिन करियर की शुरुआत में उन्हें पहचान नहीं मिली. इंडस्ट्री और लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाने के लिए सिंगर को काफी स्ट्रगल देखना पड़ा था. यहां तक जिस पहली फिल्म में उन्होंने अपनी आवाज दी वो फिल्म कभी रिलीज ही नहीं हुई.
पिता के साथ शुरु किया संगीत का सफर
सोनू निगम ने शादियों और पार्टियों में अपने पिता के साथ गाना शुरू किया. जिसके बाद वह 19 साल की उम्र में अपने बॉलीवुड गायन करियर की शुरुआत करने के लिए अपने पिता के साथ मुंबई चले गए. उन्हें हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान ने ट्रेन किया था..
जन्म फिल्म से हुई थी बॉलिवुड करियर की शुरुआत लेकिन...
साल 1990 में सोनू ने अपने करियर को शुरु किया था. उनका पहला गाना फिल्म जनम (1990) के लिए था. लेकिन यह फिल्म कभी रिलीज़ नहीं हुई. उनके करियर को बूस्ट करने में 1995 में रिलीज हुई बेवफा सनम फिल्म की अहम भूमिका है. इस फिल्म का गाना ‘अच्छा सिला दिया’ ने उन्हें लोगों के दिल में जगह बनाने का मौका दिया.
करियर का शिखर इस अवधि के दौरान उनके लोकप्रिय गाने थे "सूरज हुआ मद्धम" और "यू आर माई सोनिया" कभी खुशी कभी ग़म से... और "पंछी नदिया पवन के" फिल्म रिफ्यूजी के गाने काफी हिट थे.
2002 में मिला फिल्मफेयर अवॉर्ड
उन्हें वर्ष 2002 में फिल्म साथिया के शीर्षक गीत के लिए अपना पहला फिल्मफेयर पुरस्कार मिला, जिसे ए.आर. रहमान ने कंपोज किया था, और बोल गुलज़ार ने लिखे थे. इस अवधि के दौरान उनकी सबसे बड़ी सफलता इसी नाम की फिल्म (2003) का गाना "कल हो ना हो" थी, जिसे शंकर-एहसान-लॉय ने संगीतबद्ध किया था, और बोल जावेद अख्तर ने लिखे थे. इस गीत के लिए उन्हें अपना एकमात्र राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्वगायक के लिए अपना दूसरा और अंतिम फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार, तथा सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्वगायक के लिए तीसरा आईफ़ा पुरस्कार मिला.
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