स्वामी रामभद्राचार्य को मिला 58वां ज्ञानपीठ पुरस्कार, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया सम्मानित

    भारतीय साहित्य की सबसे प्रतिष्ठित पहचान ज्ञानपीठ पुरस्कार इस बार संस्कृत के प्रकांड विद्वान और संत रामभद्राचार्य को मिला है.

    Swami Rambhadracharya received the 58th Jnanpith Award
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- X

    नई दिल्ली: भारतीय साहित्य की सबसे प्रतिष्ठित पहचान ज्ञानपीठ पुरस्कार इस बार संस्कृत के प्रकांड विद्वान और संत रामभद्राचार्य को मिला है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को उन्हें 58वां ज्ञानपीठ सम्मान प्रदान किया. इसी वर्ष यह सम्मान उर्दू के मशहूर शायर और गीतकार गुलज़ार को भी दिया गया है, हालांकि स्वास्थ्य कारणों से वह समारोह में नहीं आ सके.

    यह सम्मान दोनों साहित्यकारों के अविस्मरणीय साहित्यिक योगदान के लिए दिया गया है. रामभद्राचार्य ने जहां संस्कृत में अध्यात्म, साहित्य और समाज को जोड़ने का कार्य किया है, वहीं गुलज़ार ने अपने शब्दों से हिंदी और उर्दू साहित्य को नया जीवन दिया.

    साहित्य, समाज की आत्मा है- राष्ट्रपति मुर्मू

    समारोह में राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने प्रेरक शब्दों में साहित्य को समाज की आत्मा और चेतना का स्तंभ बताया. उन्होंने कहा: "साहित्य सिर्फ शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि समाज की गूंज होती है. यह जोड़ता है, जगाता है और दिशा दिखाता है."

    उन्होंने बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की कालजयी रचना ‘वंदे मातरम्’ का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे एक गीत पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहा है. साथ ही वाल्मीकि, व्यास, कालिदास से लेकर टैगोर तक की काव्य परंपरा को भारतीयता की जीवंत धड़कन बताया.

    रामभद्राचार्य: अंधत्व में भी प्रकाशित साहित्य का सूर्य

    अपने सम्मान पर प्रतिक्रिया देते हुए जगतगुरु रामभद्राचार्य ने इसे न केवल व्यक्तिगत उपलब्धि, बल्कि संस्कृत साहित्य की विजय बताया. उन्होंने कहा: "मेरे साहित्य को सम्मानित किया गया है, यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है. यह पुरस्कार उस परंपरा का सम्मान है, जो हजारों वर्षों से हमारी चेतना को रचती रही है."

    राष्ट्रपति ने रामभद्राचार्य की दिव्य दृष्टि, ज्ञान और सेवा भावना की सराहना की. उन्होंने कहा कि भले ही वे शारीरिक रूप से नेत्रहीन हैं, लेकिन उन्होंने अपने आत्मिक दृष्टिकोण से समाज और साहित्य को नया आलोक दिया है. उनका जीवन बताता है कि प्रतिबंध नहीं, संकल्प ही सबसे बड़ा संबल होता है.

    गुलज़ार के लिए शुभकामनाएं

    गुलज़ार साहब की अनुपस्थिति में भी राष्ट्रपति ने उनके योगदान को श्रद्धा से याद किया. उन्होंने कहा: "गुलज़ार साहब ने जिस भावनात्मक गहराई से शब्दों को गढ़ा है, वह उन्हें हिंदी-उर्दू साहित्य का एक अमिट चेहरा बनाता है. हम उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं."

    महिला लेखिकाओं की रचनाओं का भी गुणगान

    राष्ट्रपति ने भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट की प्रशंसा करते हुए उसकी चयन प्रक्रिया की गरिमा की सराहना की. साथ ही उन्होंने भारतीय भाषाओं की महिला साहित्यकारों का उल्लेख करते हुए कहा कि आशापूर्णा देवी, अमृता प्रीतम, महादेवी वर्मा, महाश्वेता देवी और कृष्णा सोबती जैसी लेखिकाओं ने न केवल साहित्य, बल्कि समाज की सोच को भी गहराई से प्रभावित किया है.

    उन्होंने बेटियों और बहनों को प्रेरित किया कि वे भी लेखन के माध्यम से समाज की सच्चाइयों और संवेदनाओं को उजागर करें.

    ज्ञानपीठ: सिर्फ पुरस्कार नहीं, परंपरा की विरासत

    1950 के दशक में शुरू हुआ ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय भाषाओं में लेखन करने वाले साहित्यकारों को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है. यह पुरस्कार न केवल भाषा की विविधता को सम्मानित करता है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक आत्मा को भी जीवंत बनाए रखता है.

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