वर्तमान विधानसभा चुनाव के बीच आइएनडीआइए (INDIA) में कुछ दलों के बीच खटास दिखने को मिल रही है. दावा किया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव होने भर में सारे गिले शिकवे दूर हो जाएंगे और मजबूती के साथ इकट्ठे होंगे, लेकिन बता दें कि खुद ही इन दलों के अंदर यह भी तैयारी चल रही है कि गिले शिकवे बरकरार रहेंगे तो उन्हें क्या करना है. साथ ही अगर किसी कारण गठबंधन पर आंच आ गई तो असर उन सीटों तक भी पहुंचने की आशंका जताई जा रही है, जिससे कांग्रेस की आन जुड़ी हुई है.
बता दें कि मध्य प्रदेश में सीटों के बंटवारे में ध्यान न देने व मिलने से नाराज सपा ने कांग्रेस के गढ़ कहे जाने वाले रायबरेली और अमेठी में भी लोकसभा प्रत्याशी की तलाश शुरू कर दी है. वहीं, कांग्रेस भी पुराने अहसानों का लिहाज कर सिर्फ सपा नेतृत्व यानी सैफई परिवार के लिए एक सीट छोड़कर बाकी पर मुकाबले की रणनीति को अंजाम देने के बारे में सोच रही है.
नाराज सपा प्रमुख मध्य प्रदेश में चुनावी समझौता विफल होने से अखिलेश यादव के तीखे तेवर जुबान तक सिमटे हैं, रणनीतिक मोर्चा भी उसी मूड के साथ रचना शुरू कर दिया है. साथ ही सपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि गठबंधन बने रहने की संभावनाओं को कमजोर होते देख पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली और अमेठी से भी प्रत्याशी उतारने की तैयारी शुरू कर दी है. जिसमें रायबरेली से कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी सांसद हैं तो अमेठी की पारंपरिक सीट से राहुल गांधी लगातार तीन बार सांसद रह चुके हैं. वहीं राहुल गांधी 2019 में चुनाव हार गए थे, मगर इसके बाद भी एक बार फिर से वहीं से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहें हैं.
जानकारों के मुताबिक रायबरेली से सपा मजबूत जनाधार देखते हुए ऊंचाहार विधायक मनोज पांडेय को अमेठी संसदीय सीट पर गौरीगंज के तेजतर्रार विधायक राकेश प्रताप सिंह को चुनावी मैदान में उतार सकती है. तो खास बात यह है कि इन दोनों सीटों पर सपा सोनिया और राहुल के विरुद्ध प्रत्याशी उतारने से तब भी परहेज कर रहें है, बता दें कि जब इन दोनों दलों में कोई गठबंधन नहीं था.
साल 2009 से सपा ने रायबरेली में लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा है और इसी तरह जब से अमेठी पर पहले सोनिया और फिर राहुल लड़ने के लिए आए तो सपा ने धीरे से किनारा कर लिया था. फिलहाल बता दें कि यह चुनावी दोस्ती एकतरफा नहीं है. सपा के लिए कांग्रेस भी सीटें छोड़ती आई है. मैनपुरी सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की सीट रही है. तो इसलिए 2009 से उनके या उनके परिवार के सदस्य के खिलाफ कांग्रेस नहीं लड़ती है.
जानकारी के लिए बता दें कि कन्नौज में 2009 से कांग्रेस ने चुनाव नहीं लड़ा है. साथ ही आजमगढ़ लोकसभा सीट पर मुलायम सिंह के खिलाफ कांग्रेस ने फ्रेंडली फाइट की. इसके बाद फिर 2019 में अखिलेश यादव तो 2022 के उपचुनाव में धर्मेंद्र यादव के विरुद्ध प्रत्याशी नहीं उतारा था. लेकिन, अब अमेठी और रायबरेली से सपा चुनाव लड़ सकती है. इसके अलावा वहीं, इस संभावना पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि पार्टी की अभी तक रणनीति यही है कि अगर गठबंधन टूट गया, तब कांग्रेस सिर्फ सपा नेतृत्व के विरुद्ध नहीं लड़ेगी.
आपको बता दें कि यदि दोनों दल एक-दूसरे के गढ़ में लड़ते हैं तो कांग्रेस को अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है. दरअसल, अमेठी और रायबरेली में सपा का वोट बैंक काफी मजबूत है. बता दें कि अमेठी की पांच विधानसभा सीटों में से दो पर सपा ने कब्जा जमा रखा है, तीन पर भाजपा ने, जबकि कांग्रेस का कोई विधायक ही नहीं है.
दरअसल इसी तरह रायबरेली की पांच विधानसभा सीटों में से चार पर सपा और एक पर भाजपा को 2022 में जीत हासिल हुई थी. कांग्रेस यहां भी शून्य है. वहीं, कांग्रेस का कोई प्रभाव मैनपुरी, कन्नौज और आजमगढ़ में फिलहाल अभी तक नहीं है.