SC बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने PM Modi को लिखा पत्र, जजों की नियुक्ती का किया अनुरोध

    सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदिश चंद्र अग्रवाल ने पीएम मोदी को एक खुला पत्र लिखा है. इसमें उन्होंने ट्रिब्यूनल और आयोगों में रिटायर्ड जजों की नियुक्ति को लेकर पत्र लिखी.

    SC बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने PM Modi को लिखा पत्र, जजों की नियुक्ती का किया अनुरोध

    SC Bar Association President Letter

    नई दिल्ली:
    देश की सर्वोच्च न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट  (Supreme Court) बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदिश चंद्र अग्रवाल (Adish Aggarwala) ने मंगलवार को प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) को एक पत्र लिखा. इस पत्र में इन्होंने ट्रिब्यूनल्स (न्यायाधिकरणों) और आयोगों में मौजूदा न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रदान करने के लिए कानूनों में उपयुक्त संशोधन करने का अनुरोध किया गया. 

    SC बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदिश ने अपने पत्र में कहा, "मैं सरकार द्वारा आयोगों और ट्रिब्यूनल्स के अध्यक्ष और सदस्यों के रूप में सुप्रीम कोर्ट और सभी हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति और ऐसे अन्य पदों पर निष्पक्षता के बारे में लोगों की धारणा पर पड़ने वाले प्रभाव को उजागर करना चाहता हूं. इन जजों के बारे में और इन जजों द्वारा सेवा में रहने के दौरान दिए गए फैसलों के बारे में, जैसा कि सब जानते हैं , सरकार अदालतों में सबसे बड़ी वादी है, सरकार के खिलाफ या सरकार के खिलाफ मामलों के अलावा, मंत्रियों से जुड़े मामले भी हैं और अन्य राजनीतिक रूप से सक्रिय व्यक्ति भी हैं. किसी मामले का फैसला करने वाले न्यायाधीश को एक निष्पक्ष अंपायर के रूप में देखा जाता है, जिस पर कोई भी पक्ष पहुंच नहीं सकता है."

    सरकार के अनुकून काम करने का आरोप न लगे 

    आदिश ने आगे कहा, "जब इस जजों को, रिटायर्ड के तुरंत बाद, सरकार द्वारा एक निश्चित पद संभालने के लिए चुना जाता है, तो लोग यह अनुमान लगाने से बच नहीं सकते कि क्या न्यायाधीश कुर्सी पर रहते हुए सरकार को खुश कर रहा था ताकि बदले में उसकी रिटायर्ड पर सरकार द्वारा अनुकूल रूप से विचार किया जा सके.”  

    मानवाधिकार आयोगों की अध्यक्षता रिटायर जजों ने की 

    सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने यह भी बताया कि यह चलन 1988 में केंद्र में कांग्रेस पार्टी के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ था. "उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act) और बाद में मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम ने उपभोक्ता अदालतों और मानवाधिकार आयोगों की स्थापना की, जिनकी अध्यक्षता रिटायर्ड जजों ने की. अब बड़ी संख्या में रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट के जज, मुख्य न्यायाधीश और विभिन्न हाई कोर्ट के जज हैं जो भारत के विभिन्न हिस्सों में आयोगों और ट्रिब्यूनल्स की अध्यक्षता कर रहे हैं, जिनकी नियुक्ति केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा की गई है.”

    जजों के सेवाकाल को बढ़ाने को कहा 

    आदिश अग्रवाल ने आगे कहा कि “संविधान स्वयं सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के रूप में अधिवक्ताओं की सीधी नियुक्ति का प्रावधान करता है. यदि अधिवक्ताओं को महत्वपूर्ण संवैधानिक न्यायालयों के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त करने पर विचार किया जा सकता है, तो कोई कारण नहीं है कि उन्हें न्यायाधिकरणों और आयोगों के प्रमुख के रूप में विचार के क्षेत्र में नहीं होना चाहिए” उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष से बढ़ाकर 68 वर्ष और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 62 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष करके न्यायाधीशों की सेवाओं का उपयोग अदालतों में लंबे कार्यकाल के लिए लाभप्रद रूप से किया जाना चाहिए. 

    रिटायर होने के बाद राजनीति में सक्रिय होने की ओर किया इशारा 

    आदिश अग्रवाल ने इस ओर भी इशारा किया कि अगर कोई जज रिटायर्ड होता है या फिर अपने पद से इस्तीफा देता है, तो वो एक्टिव रूप से राजनीति में शामिल हो जाता है. उन्होंने कहा "एक और घटना है जो कानूनी पेशे और विशेष रूप से न्यायपालिका को बदनाम कर रही है. ऐसा तब होता है जब कोई न्यायाधीश इस्तीफा देता है या सेवानिवृत्त होता है और तुरंत सक्रिय राजनीति में शामिल हो जाता है. मैं न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर बुनियादी सिद्धांतों का उल्लेख करना चाहता हूं, जिन्हें अपनाया गया है 6 सितंबर, 1985 को संयुक्त राष्ट्र कांग्रेस से और महासभा द्वारा इसका समर्थन किया गया, जो मानती है कि न्यायाधीश अन्य नागरिकों को दी गई स्वतंत्रता का आनंद ले सकते हैं, लेकिन उन्हें "खुद को इस तरह से आचरण करना चाहिए कि उनके कार्यालय की गरिमा और निष्पक्षता और स्वतंत्रता को बनाए रखा जा सके."

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