महिलाओं के खिलाफ अपराध पर हम 'सामूहिक भूल' का सहारा लेते हैं, आइए कहें- बस बहुत हुआ : राष्ट्रपति मुर्मू
नई दिल्ली : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को महिलाओं के खिलाफ अत्याचार की घटनाओं पर अपनी नाराजगी जताई और इस खराब ट्रेंड की जड़ों को सामने लाने के लिए अपने अंदर झांकने की अपील की.
राष्ट्रपति ने हाल ही में हुई अपराध की घटनाओं पर अपनी गहरी पीड़ा व्यक्त करने के लिए एक खुला पत्र 'महिला सुरक्षा: बस बहुत हो गया' लिखा और कहा कि महिलाओं को अपनी जीती हुई जमीन के हर इंच के लिए संघर्ष करना पड़ा है.
अब समय आ गया है के महिलाओं के प्रति विकृति की जांच की जाए : मुर्मू
अपराध की याददाश्त के बारे में सामूहिक विस्मृति पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि न केवल इतिहास का सीधे सामना किया जाए, "बल्कि अपनी आत्मा में झांकने और महिलाओं के खिलाफ अपराध की विकृति की जांच करने का भी समय आ गया है."
राष्ट्रपति ने भविष्य में समाज को अधिक सतर्क बनाने के लिए पीड़ितों की याद को सम्मान देने अपील की और कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों की हालिया बाढ़ को ईमानदारी से आत्मनिरीक्षण करने के लिए मजबूर होना चाहिए. उन्होंने उस मानसिकता का मुकाबला करने की आवश्यकता पर बात की जो "महिला को कमतर इंसान, कम शक्तिशाली, कम सक्षम, कम बुद्धिमान" के रूप में देखती है और कहा कि यह "कुछ लोगों द्वारा महिलाओं को ऑब्जेक्ट के रूप में देखने की वजह से है जो महिलाओं के खिलाफ अपराधों के पीछे की वजह है".
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कोई सभ्य समाज ऐसी घटना की इजाजत नहीं दे सकता : राष्ट्रपति
उन्होंने कहा, "कोलकाता में एक डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की जघन्य घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. जब मुझे इसके बारे में पता चला तो मैं निराश और भयभीत हो गई. इससे भी अधिक निराशाजनक बात यह है कि यह अपनी तरह की एकमात्र घटना नहीं थी; यह महिलाओं के खिलाफ अपराधों की कड़ी का एक हिस्सा है. जब कोलकाता में छात्र, डॉक्टर और नागरिक विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, तब भी अपराधी अन्य जगहों पर घूम रहे थे. पीड़ितों में किंडरगार्टन की लड़कियां भी शामिल हैं. कोई भी सभ्य समाज बेटियों और बहनों को इस तरह के अत्याचारों का शिकार होने की अनुमति नहीं दे सकता. राष्ट्र का आक्रोशित होना लाजमी है, और मैं भी हूं."
राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने पिछले साल महिला दिवस पर एक समाचार पत्र में लेख के रूप में महिला सशक्तीकरण के बारे में अपने विचार और उम्मीदें साझा की थीं.
उन्होंने कहा, "महिलाओं को सशक्त बनाने में हमारी पिछली उपलब्धियों के कारण मैं आशावादी बनी हुई हूं. मैं खुद को भारत में महिला सशक्तीकरण की उस शानदार यात्रा का एक उदाहरण मानती हूं. लेकिन जब मैं देश के किसी भी हिस्से में महिलाओं के खिलाफ क्रूरता के बारे में सुनती हूं तो मुझे खुद बहुत दुख होता है."
राखी बांधने आई बच्चियों ने पूछा था- निर्भया जैसी घटना तो नहीं झेलनी पड़ेगी : मुर्मू
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि वह एक अनोखी दुविधा में थीं, जब राष्ट्रपति भवन में राखी मनाने आए कुछ स्कूली बच्चों ने उनसे मासूमियत से पूछा कि क्या उन्हें आश्वासन दिया जा सकता है कि भविष्य में निर्भया जैसी घटना को नहीं दोहराया जाएगा.
राष्ट्रपति ने कहा, "मैंने उनसे कहा कि हालांकि देश, हर नागरिक की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन आत्मरक्षा और मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण सभी के लिए, खासकर लड़कियों के लिए, उन्हें मजबूत बनाने के लिए आवश्यक है. लेकिन यह उनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं है क्योंकि महिलाओं की सुरक्षा कई फैक्टर्स से प्रभावित होती है. जाहिर है, इस सवाल का पूरा जवाब हमारे समाज से ही मिल सकता है. ऐसा होने के लिए, सबसे पहले जो चीज जरूरी है, वह है ईमानदार, निष्पक्ष आत्मनिरीक्षण."
हमें खुद से पूछने की जरूरत है कि हमने कहां गलती की : राष्ट्रपति
उन्होंने कहा, "समय आ गया है जब हमें एक समाज के रूप में खुद से कुछ कठिन सवाल पूछें. हमने कहां गलती की है? और हम गलतियों को दूर करने के लिए क्या कर सकते हैं? इस सवाल का जवाब खोजे बिना, हमारी आधी आबादी दूसरी आधी आबादी की तरह स्वतंत्र रूप से नहीं रह सकती. इसका जवाब देने के लिए, मैं इसे शुरू में ही समझा दूंगी. हमारे संविधान ने महिलाओं सहित सभी को समानता प्रदान की है, जबकि यह दुनिया के कई हिस्सों में केवल एक आदर्श था."
उन्होंने कहा कि राज्य ने इस समानता को स्थापित करने के लिए, जहां भी ज़रूरत थी, संस्थाएं बनाईं और कई योजनाओं और पहलों के ज़रिए इसे बढ़ावा दिया गया. उन्होंने कहा कि नागरिक समाज आगे आया और इस संबंध में सरकार की पहुंच को बढ़ाने के काम आया, उन्होंने कहा कि समाज के सभी क्षेत्रों में दूरदर्शी नेताओं ने लैंगिक समानता के लिए जोर दिया.
"आखिरकार, असाधारण, साहसी महिलाएं थीं जिन्होंने अपनी कम भाग्यशाली बहनों के लिए इस सामाजिक क्रांति से लाभ उठाना संभव बनाया. यह महिला सशक्तीकरण की गाथा रही है. फिर भी, यह यात्रा अपनी बाधाओं के बिना नहीं रही."
राष्ट्रपति ने कहा कि सामाजिक पूर्वाग्रह महिलाओं के अधिकारों के विस्तार में बाधाएं रहे हैं.
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मुर्मू ने कहा- मैं इसे पुरुषवादी मानसिकता नहीं कहूंगी, सब ऐसे नहीं हैं
उन्होंने कहा, "महिलाओं को अपनी जीती हुई एक-एक इंच ज़मीन के लिए लड़ना पड़ा है. सामाजिक पूर्वाग्रहों के साथ-साथ कुछ रीति-रिवाज़ों और प्रथाओं ने हमेशा महिलाओं के अधिकारों के विस्तार में बाधा पहुंचाई है. यह एक बहुत ही निंदनीय मानसिकता है. मैं इसे पुरुषवादी मानसिकता नहीं कहूंगी, क्योंकि इसका व्यक्ति के जेंडर से कोई लेना-देना नहीं है: ऐसे बहुत से पुरुष हैं जिनके पास यह सोच नहीं है."
मुर्मू ने कहा, "यह मानसिकता महिलाओं को कमतर इंसान, कम शक्तिशाली, कम सक्षम, कम बुद्धिमान मानती है. जो लोग इस तरह के विचार रखते हैं, वे आगे बढ़कर महिलाओं को एक वस्तु के रूप में देखते हैं. महिलाओं के खिलाफ अपराधों के पीछे कुछ लोगों द्वारा महिलाओं को वस्तु के रूप में पेश किया जाना ही वजह है. यह ऐसे लोगों के दिमाग में यह गहराई से समाया हुआ है. मैं यहां यह भी कहना चाहूंगी कि अफसोस की बात है कि यह केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में है. एक जगह और दूसरी जगह के बीच का अंतर का फर्क डिग्री (स्केल) का है."
इस मानसिकता का मुकाबला करना सरकार और समाज दोनों का काम : द्रौपदी मुर्मू
राष्ट्रपति ने कहा कि इस मानसिकता का मुकाबला करना राज्य और समाज दोनों के लिए एक काम है. "भारत में, पिछले कई सालों से, दोनों ने गलत रवैये को बदलने के लिए कड़ी लड़ाई लड़ी है." उन्होंने कहा कि कानून और सामाजिक अभियान रहे हैं, लेकिन कुछ ऐसा है जो "हमें परेशान करता रहता है".
राष्ट्रपति ने कहा, "दिसंबर 2012 में, हम उस चीज के आमने-सामने आ गए थे, जब एक युवती के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उसकी हत्या कर दी गई. सदमे और गुस्से का माहौल था. हम दृढ़ संकल्प थे कि किसी और निर्भया को ऐसा न सहना पड़े. हमने योजनाएं बनाईं और रणनीति बनाई. इन पहलों ने कुछ हद तक बदलाव किया. फिर भी, जब तक कोई महिला उस माहौल में असुरक्षित महसूस करती रहेगी, जहां वह रहती या काम करती है, तब तक हमारा काम अधूरा रहेगा."
'दिल्ली में निर्भया की घटना के बाद अनगिनत त्रासदियां हुईं हैं'
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में उस त्रासदी के बाद से बारह वर्षों में, इसी तरह की प्रकृति की अनगिनत त्रासदियां हुई हैं, हालांकि केवल कुछ ने ही पूरे देश का ध्यान खींचा.
उन्होंने कहा, "ये भी जल्द ही भुला दिए गए. क्या हमने अपने सबक सीखे? जैसे-जैसे सामाजिक विरोध कम होते गए, ये घटनाएं सामाजिक स्मृति के गहरे और दुर्गम कोने में दब गईं, जिन्हें केवल तभी याद किया जाता है जब कोई और जघन्य अपराध होता है. मुझे डर है कि यह सामूहिक भूलने की बीमारी उतनी ही घृणित है जितनी कि मैंने जिस मानसिकता की बात की थी."
हम इतिहास का सामना करने से डरते हैं, सामूहिक स्मृतिलोप का सहारा लेते हैं : मुर्मू
उन्होंने कहा, "इतिहास अक्सर दुख देता है. इतिहास का सामना करने से डरने वाले समाज सामूहिक स्मृतिलोप का सहारा लेते हैं और कहावत के अनुसार शुतुरमुर्ग की तरह अपना सिर रेत में दबा लेते हैं. अब समय आ गया है कि हम न केवल इतिहास का सामना करें, बल्कि अपनी आत्मा में झांकें और महिलाओं के खिलाफ अपराध की विकृति की पड़ताल करें. मेरा दृढ़ विश्वास है कि हमें इस तरह के अपराध पर स्मृतिलोप को हावी नहीं होने देना चाहिए.
उन्होंने कहा, "हमें इस विकृति से बड़े तौर से निपटना चाहिए, ताकि इसे शुरू में ही रोका जा सके. हम ऐसा तभी कर सकते हैं जब हम पीड़ितों की स्मृति का सम्मान करें और उन्हें याद करने की सामाजिक संस्कृति विकसित करें ताकि हमें अतीत में हमारी असफलताओं की याद दिलाई जा सके और हमें भविष्य में और अधिक सतर्क रहने के लिए तैयार किया जा सके."
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि देश का यह कर्तव्य है कि वह अपनी बेटियों के भय से मुक्ति पाने के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करे. उन्होंने कहा, "फिर हम सामूहिक रूप से अगले रक्षाबंधन पर उन बच्चों की मासूम जिज्ञासा का दृढ़ उत्तर दे सकते हैं. आइए हम सामूहिक रूप से कहें कि अब बहुत हो गया."
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