नई दिल्ली: कुछ पाकिस्तानी सेलेब्स और मीडिया संस्थानों के सोशल मीडिया अकाउंट्स भारत में एक बार फिर से एक्टिव नजर आ रहे हैं. इसमें पूर्व क्रिकेटर शोएब अख्तर, शाहिद अफ्रीदी, राशिद लतीफ और बासित अली के यूट्यूब चैनल शामिल हैं. इसके अलावा पाकिस्तानी टेलीविज़न नेटवर्क जैसे ARY डिजिटल, हम टीवी और हर पल जियो के अकाउंट्स भी भारतीय यूज़र्स के लिए दोबारा दिखाई देने लगे हैं.
यह गतिविधि ऐसे समय सामने आई है जब इन अकाउंट्स पर अप्रैल 2024 में ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने ब्लॉकिंग कार्रवाई की थी. अब इन अकाउंट्स की बहाली को लेकर सरकार की ओर से कोई आधिकारिक सूचना या स्पष्टीकरण जारी नहीं किया गया है.
क्या है मामला?
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने 16 पाकिस्तानी यूट्यूब चैनल्स को बैन कर दिया था. इन चैनलों पर भारतीय सेना और सुरक्षा एजेंसियों के खिलाफ भ्रामक और भड़काऊ सामग्री प्रसारित करने का आरोप था. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के मुताबिक, इन चैनलों के कुल 63 मिलियन से अधिक सब्सक्राइबर थे.
भारत में बैन किए यू-ट्यूब चैनल्स की लिस्ट-

दिखने लगे कई पाकिस्तानी सेलेब्स के अकाउंट
2 जुलाई से कुछ पाकिस्तानी कलाकारों के इंस्टाग्राम अकाउंट्स भी भारतीय यूज़र्स को फिर से उपलब्ध होने लगे हैं. इनमें शामिल हैं:
कुछ सेलेब्स के अकाउंट अब भी प्रतिबंधित
वहीं कुछ प्रमुख नाम अब भी भारत में प्रतिबंधित हैं. इनकी प्रोफाइल खोलने पर संदेश आता है: "यह अकाउंट आपके देश में उपलब्ध नहीं है. लीगल रिक्वेस्ट के तहत प्रतिबंध लगाया गया है."
इनमें शामिल हैं:
इन कलाकारों पर पहले भी भारत में कार्य प्रतिबंध लगे हैं, विशेषकर 2016 के उरी हमले के बाद.
क्या बदली है नीति? सरकार की चुप्पी पर सवाल
सरकार की ओर से अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि क्या सोशल मीडिया पर लगाए गए ये प्रतिबंध आधिकारिक रूप से हटाए गए हैं, या यह तकनीकी रूप से अस्थायी बहाली है. जानकारों का मानना है कि यह विषय केवल नीतिगत नहीं, बल्कि राजनयिक और सुरक्षा नीति से भी जुड़ा हुआ है.
कलाकारों को राजनीति का शिकार न बनाएं- न्यायपालिका
साल 2023 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने पाकिस्तानी कलाकारों पर प्रतिबंध लगाने की एक याचिका खारिज करते हुए कहा था कि "कला और कलाकारों को राजनीतिक मतभेदों के कारण दंडित नहीं किया जाना चाहिए." कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान लोकतांत्रिक मूल्यों का हिस्सा है और इसे राजनीतिक सीमाओं से नहीं जोड़ा जाना चाहिए.
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