नई दिल्ली : भारत 24 के सीईओ और एडिटर इन चीफ डॉ. जगदीश चंद्र के 'The JC Show' का लाखों-करोड़ों दर्शकों को इंतजार रहता है. इस बार The JC Show प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की लाओस यात्रा को लेकर है. इस बार इस शो का नाम है- NEW DELHI TO LAOS NEW FRIENDSHIP NEW TIES. आइए जानते हैं इस शो में Man of Prediction कहे जाने वाले डॉ. जगदीश चंद्र का विश्लेषण.
गौरतलब है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन और 19वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए गुरुवार को लाओस की दो दिवसीय यात्रा पर गए थे.
सवाल- लाओस से प्रधानमंत्री मोदी क्या लेकर आए हैं?
इस सवाल के जवाब में डॉ जगदीश चंद्र ने कहा, "भारत के लिए प्रतिष्ठा लेकर लौटे हैं मोदी, ब्रांड मोदी और ब्रैंड इंडिया को और मजबूत करके लौटे हैं मोदी और एशियान कंट्री जो चाइना से डरे हुए हैं उनको एक भरोसा दिलाकर लौटे हैं मोदी. इसके साथ ही जापान न्यूजीलैंड और थाईलैंड के प्रधानमंत्रियों के साथ व्यापारिक और आर्थिक रिश्तों को और मजबूत करके के लौटे हैं मोदी. एक तरह से कहा जा सकता है कि लाओस में भारत की धाक और खुद का जो ग्लोबल लीडर का ब्रांड है उसे मजबूत करके लौटे हैं मोदी."
सवाल- लाओस में एक बार फिर पीएम मोदी ने जोर देकर कहा कि समस्याओं का समाधान युद्ध के मैदान में नहीं है आखिर वे बार-बार इस नैरेटिव पर क्यों जोर दे रहे हैं?
इस सवाल के जवाब में डॉ चंद्र ने कहा, "वो कन्वींस है इस बात से कि आज जो संसार के बिगड़ते हुए हालात हैं एक से एक राष्ट्र युद्ध में उलझता जा रहा है उनकी चिंता है कि क्या होगा? एक तरफ यूक्रेन-रुस का युद्ध चल रहा है, फिर इजराइल और ईरान में चले गए, एक और देश युद्ध के कागार पे है, ताइवान की बात आती है, उत्तर कोरिया की बात आती है. जब सारा विश्व युद्ध की भूमिका होगा तो समझौता कौन कराएगा बातचीत कौन कराएगा, इसलिए बार-बार कहते हैं कि युद्ध की तरफ मत बढ़ो. इन समस्याओं का समाधान, आपसी झगड़ों का हल बैटल फील्ड में नहीं है वह वार्ता की टेबल पर है. उनको आने वाले कल की चिंता है."
सवाल- क्या आपको लगता है कि रुस-यूक्रेन और मिडिल ईस्ट में पीएम मोदी के शांति प्रयासों को देखते हुए अगला Nobel Peace पुरस्कार उनको मिल सकता है?
भारत 24 के सीईओ डॉ चंद्र ने कहा कि हां, वह नेक्स्ट नोबेल प्राइज के मजबूत कंटेंडर हैं. एक बड़े अखबार ने लिखा है कि पीएम मोदी वर्ल्ड वॉर शुरु होने के मौके पर पीसमेकर बनकर उभरे. आप देखिए चिंता लोगों की किस तरह की है और जैसा कि मैंने कहा कि सारे संसार में आज कई बड़े-बड़े देश युद्ध के कगार पर खड़े हुए हैं. ऐसे हालात के अंदर पीएम मोदी ने इजराइल के प्राइम मिनिस्टर को भी दो टू के कहा कि बातचीत से हल निकलेगा और अगर सभी लोग तैयार हैं तो मैं फिर बातचीत के लिए तैयार हूं. अगर आने वाले वर्ष में मोदी के रोल से अगर रुस-यूक्रेन का समझौता हुआ या कहे कि ईरान और इजराइल का युद्ध कंट्रोल हुआ तो निश्चित तौर पर नोबल प्राइज के लिए मोदी एक स्ट्रांग कंटेंडर होंगे ऐसा मेरा आकलन है.
सवाल- लाओस में पीएम मोदी ने कहा था कि आसियान फ्रेंडशिप इज क्रुशल इन द टाइम ऑफ कॉन्फ्लिक्ट, क्या उनका निशाना चीन के तरफ था?
डॉ चंद्र ने कहा, "बिलकुल, वो जो सात राष्ट्र हैं एशियान के वो स्ट्रेटजिकली ताकतवर है. उनके लिए इशारा था कि तुम डरो मत, इकट्ठे रहो, इकट्ठे रहेंगे तो एकता में शक्ति है और मैं एशियान में नेतृत्व दे रहा हूं, मेरे साथ आओ और बार-बार उन्होंने इस बात को कहा कि डेवलपमेंट पर फोकस करें, विस्तारवाद पे नहीं. चीना को वे मैसेज भेजते हैं कि विस्तारवाद छोड़िए आज संसार विस्तार वाद का नहीं है."
सवाल- लाओस में मौजूदा मेजबान और अगले सम्मेलन के मेजबान के बाद जो पहला संबोधन रहा वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रहा, इस घटनाक्रम को आप कैसे देखते हैं?
जवाब में डॉ चंद्र ने कहा, "यह भारत के लिए और नरेंद्र मोदी के लिए भी बहुत गर्व की बात है. वहां चाइना था, पाकिस्तान था किसी को वो तवज्जो, वो रुतबा, वो इज्जत नहीं मिली जो नरेंद्र मोदी को मिली. स्वाभाविक है की उनकी पर्सनालिटी ऐसी है, और मैंने पहले भी कहा था कि वह एक चमत्कारी व्यक्ति हैं."
सवाल- लाओस में इस बार एक बड़ी दिलचस्प चर्चा सुनने को मिली कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सात बाणों से रावण संहार और भयमुक्त हो जाएगा इंडो पैसिफिक इस लोक कथा के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
डॉ चंद्र ने कहा, "लोक कथा सही है, रावण का अर्थ चाइना से है और संहार से भय मुक्त हो जाएगा. ये सात देश जो डरे रहते हैं किसी ना किसी कारण से, वहां तक उनका जो सिंबॉलिक है वो सही है. इसे मोदी के सात तीर भी कहते हैं, तो ये सात तीर क्या है? हला तो समुद्री सुरक्षा, फ्री मूवमेंट हो समुद्र के अंदर. दूसरा है Sea Economy जो इन्होंने इस तरह का कांसेप्ट दिया है. तीसरा Disaster Management उसको बीच में लाए हैं. आपसी सुरक्षा है फिर हेल्थ का विषय है ऐसे सात बिंदु उन्होंने तय किए हैं. उन्होंने कहा है कि ये सात तीर हैं, सातों राष्ट्र साथ मिलकर चलेंगे तो फिर हम चीन को कंट्रोल कर लेंगे. चीन का बढ़ता विस्तारवाद है जो हम रोक लेंगे."
सवाल- क्या चीन का विस्तारवादी मंसूबा अपने ग्रेट वाल के दायरे में नेपाल को भी शामिल करना चाहता है?
जगदीश चंद्र ने कहा- बेशक, चीन अपने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र को पुनः परिभाषित करने का प्रयास कर रहा है और मौजूदा दीवार के वर्तमान आकार और डिजाइन को बदलना चाहता है. कह सकते हैं कि जो ग्रेट वॉल है उसको चीन नया रूप देना चाहता है. चाइना की पॉलिसी है लोन दो, आर्थिक सहायता दो और व्यक्ति को विवश कर दो फिर वह अपनी संपत्ति अपनी जमीन जायदाद आपके नाम कर दे. नेपाल में 50 फीसदी से ज्यादा रोड, इंफ्रास्ट्रक्चर चाइना का बनाया हुआ है और अब चीन नेपाल के गांव में घुसने की कोशिश कर रहा है.
सवाल- लद्दाख में एलएसी पर छेड़छाड़ के बाद चीन अब ताइवान पर हमले की तैयारी कर रहा है, सवाल यह है कि आखिर कहां जाकर चीन की विस्तारवादी नीति का अंत होगा?
जगदीश चंद्र ने कहा, "ऐसा है कि चाइना का विस्तारवाद तो अब एक एजेंडा बन गया है. अब लेटेस्ट थ्रेट जो है वो ताइवान पे आई है. ताइवान के कुल 180 किलोमीटर गल्फ का टुकड़ा चाइना के साथ जुड़ा हुआ है. कभी भी झपट्टा मार के आप उसको ले सकते हो, लेकिन अमेरिका का सपोर्ट है, बैलेंसिंग एक्ट है इसलिए चीन ऐसा नही कर पाता है. ताइवान में नया राष्ट्रपति आया है उसने कह दिया कि दो अलग-अलग देश हैं ताइवान चाइना का हिस्सा नहीं है, इसी बात से चाइना नाराज है कि बयान आपने ऐसा क्यों दिया है. चाइना ने थ्रेट दी है कि हम हमला कर सकते हैं, लेकिन ताइवान पर हमला करना इतना आसान नहीं होगा."
सवाल- अभी भारत-आसियान ने दक्षिण चीन सागर विवाद को सुलझाने के लिए UNCLOS का समर्थन किया आप इसे किस तरह से देखते हैं और इसके मायने क्या हैं?
डॉ चंद्र ने कहा, "यह एक अच्छा प्रयास है. अब UNO तो कानून से चलता है. उनका कहना ये कि फ्री मूवमेंट होना चाहिए चाइना सी के अंदर. लेकिन चाइना फ्री मूवमेंट करने नहीं देता है, तो यूएन ने सबके साथ मिलकर एक प्रस्ताव बनाया है जिसमें एशियन कंट्रीज का भी सपोर्ट है अमेरिका का भी सपोर्ट है और बहुत से देशों का सपोर्ट है. तो यूएन का प्रयास अच्छा है और इसकी सराहना की जानी चाहिए और भारत को पूरा प्रयास करना चाहिए कि भारत इसके हाथ मजबूत करे."
सवाल- आखिर देश और विदेश में कैसी रही पीएम मोदी की लाओस यात्रा की मीडिया कवरेज?
डॉ चंद्र ने कहा, "कवरेज अच्छा है, विदेशों में नार्मल कवरेज भी थी, देश में सबजेक्ट बहुत ड्राई था, लोगों का बहुत इंटरेस्ट नही था, फिर भी नरेंद्र मोदी का चार्म ऐसा है और पीएमओ का मैनेजमेंट ऐसा है कि सब अखबारों ने लीड बनाया. भारत में भी खासकर अंग्रेजी के अखबारों ने इसको ज्यादा अच्छा कवर किया बजाय हिंदी के अखबारों के, तो गुड मीडिया कवरेज एंड गुड मीडिया मैनेजमेंट."
सवाल- रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि हम चीन के साथ LAC वार्ता को लेकर पूरी तरह आशावादी हैं, इसके क्या मायने हैं?
डॉ चंद्र ने कहा, "डोकलाम और गलवान घाटी में जो हुआ वो किसी से छिपा नहीं है. वह तो भारतीय सेना अलर्ट थी लीडरशिप अलर्ट थी नरेंद्र मोदी अलर्ट थे तो आगे बढ़ नहीं पाए और उनको रोक दिया, पलटवार हुआ. मैंने सुना था कि 45-40 उनके सैनिक शहीद हो गए थे. पहली बार भारत ने उनको करारा जवाब दिया. लेकिन क्या है कि पिछले दिनों विदेश मंत्री ने भी कहा था कि थिंग्स आर नॉट नॉर्मल मतलब अंडर कंट्रोल है लेकिन नॉर्मल सिचुएशन नहीं है, तो राजनाथ सिंह ने कहा कि नॉर्मल नहीं है तो हम अलर्ट हैं. चाइना उल्लंघन नहीं करेगा, चाइना लड़ाई का मौका नहीं देगा, चाइना में युद्ध के लिए मजबूर नहीं करेगा लेकिन हमें अलर्ट रहना होगा."
सवाल- भारत की Act East Policy के 10 साल पूरे हो गए हैं, आखिर कितना सफल हुआ हमारा ये कदम?
डॉ चंद्र ने कहा- अच्छा सफल रहा. नरेंद्र मोदी का एक्सक्लूसिव इनिशिएटिव था ये पहल. Act East Policy को 10 साल हो गए हैं, और खुद पीएम मोदी ने कहा है कि इन 10 साल में एशियान के साथ हमने हमारे ऐतिहासिक संबंध थे उनको पुनर्जीवित किया है और इसे नई दिशा, शक्ति और ऊर्जा मिली है. व्यापार बढ़ा है, संबंध बढ़े हैं. सातों आसियान देश न्यू दिल्ली से डायरेक्ट फ्लाइट से जुड़े हुए हैं और ब्रुनेई की फ्लाइट चालू होने वाली है. एक तरह से तो कुल मिलाकर प्रयोग अच्छा है और इसका आने वाला कल भी अच्छा है.
सवाल- आसियान क्या है और इसकी स्थापना का उदेश्य क्या था?
डॉ चंद्र ने कहा- बेसिकली सात राष्ट्र हैं बाद में दूसरे लोग आकर जुड़ जाते हैं जो अच्छा प्रयास है. यह एक तरह से मिनी नाटो है. इनका लक्ष्य एक ही था कि चाइना के विस्तार को रोकना है अब अकेला कोई हिम्मत कर नहीं सकता तो सब देश जुड़े हैं. कुल मिलाकर अच्छा प्रयास था, सफल है और आने वाले कई वर्षों तक यह जारी रहेगा इसमें कोई संदेह नहीं है.
सवाल- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि 21वीं सदी आसियान राष्ट्रों की सदी है आप इसे किस तरह से देखते हैं?
डॉ चंद्र ने कहा- यह उम्मीद है प्रधानमंत्री की उम्मीद है जिसे उन्होंने भरी निगाहों से देखा है. पिछले 8-10 साल की जो प्रोग्रेस है उससे यह कहते हैं कि 21वीं सदी आसियान कंट्रीज की सदी है, लुक ईस्ट की सदी है, आशा की एक किरण है जो आपको भरोसा दिलाता है. तो कहा जा सकता है 21वीं सदी जो है आसियान कंट्रीज की सदी है.
सवाल- आसियान के दौरान में पीएम मोदी की अमेरिका, जापान, न्यूजीलैंड और थाईलैंड के नेताओं के साथ मुलाकात हुई थी, इस मुलाकात का एजेंडा क्या था?
डॉ चंद्र ने कहा- अमेरिका के विदेश मंत्री वहां गए थे, तो उनसे अच्छी बातचीत थी, नॉर्मल बातचीत थी. अमेरिका का एजेंडा डिस्कस होता रहता है. उसके बाद में जापान का मुलाकात जरुरी था. जापान में 8-10 दिन पहले नए प्रधानमंत्री बने हैं. नरेंद्र मोदी से पहली बार मुलाकात हुई. नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमारे बड़े फ्रेंडली रिश्ते भी है और स्ट्रेटेजिक रिलेशन भी है. तो कुल मिलाकर यह तय हुआ कि तीन क्षेत्रों पर हम फोकस करेंगे- इंफ्रास्ट्रक्चर, कनेक्टिविटी और डिफेंस. यह एक अच्छी मुलाकात थी, जापान एक बड़ा राष्ट्र है, भारत के साथ बहुत अच्छे व्यापारिक संबंध है तो ये मुलाकात एक मोराल बूस्टर थी.
सवाल- नरेंद्र मोदी ने कहा कि आतंकवाद एक ग्लोबल थ्रेट है, आपको लगता है कि आसियान देशों के बीच में आतंकवाद को लेकर कोई ठोस बातचीत हुई है?
डॉ चंद्र ने कहा- सबसे बड़ी बात होती है एक दूसरे को Sensitize करना, नरेंद्र मोदी ने मुद्दा उठाकर इनको Sensitize किया है. आज तो चलो किसी देश के अंदर से उग्रवादी हमला नहीं कर रहे हैं, कल को 9-11, 22-11 कहीं हो सकता है. विश्व के अंदर अलग-अलग देशों में अलग-अलग अटैक होते हैं. टेररिज्म इज अ ग्लोबल थ्रेट इसको सीरियसली लीजिए हमारे साथ खड़े होइए भारत आज आतंकवाद के खिलाफ विश्व के मंच से लड़ाई लड़ रहा है तो हमें जवाइन कीजिए तो एक सेंसटाइज करने का प्रयास था नरेंद्र मोदी का उन राष्ट्रों को सेंसटाइज किया गया और एक अच्छी बात है उन सब राष्ट्रों में अगर चेतना जागृति ऐसी आती है कि हमें आतंकवाद के प्रति एक्स्ट्रा प्रिकॉशन लेना है उसको रोकने के लिए तो अच्छा प्रयास है.
सवाल- इज़राइल के खिलाफ 104 देशों द्वारा समर्थित प्रस्ताव पर आखिर भारत ने हस्ताक्षर क्यों नहीं किया?
डॉ चंद्र ने कहा- हर कंट्री के अपने इंटरेस्ट है, नरेंद्र मोदी कह चुके हैं नेशनल इंटरेस्ट फर्स्ट. हमारी जो पॉलिसी इजराइल के साथ है जो रिश्ते हैं उन्हें ठीक नहीं लगा भारत सरकार को उनको सपोर्ट करना. वहां यूएन की बिल्डिंग थी जहां काम चलते थे वो भी अटैक में आ गई. एरर जजमेंट भी हो जाती है इंसान से, तो सब सब राष्ट्रों ने एक प्रस्ताव पास किया की हम इसकी निंदा करते हैं, इजराइल का हमला गलत हुआ. भारत ने अपने आप को उससे दूर रखा, मेंटली तो भारत ने भी निंदा की होगी लेकिन स्ट्रेटजिकली ऑन पेपर आप नहीं कर पाते हैं. हर राष्ट्र अपने हित अपने स्वार्थ और अपनी पॉलिसी के हिसाब से फैसले लेता है, तो भारत ने साइन नहीं किया.
सवाल- क्या आपको लगता है कि मनोज सिन्हा श्रीनगर से वापस लौटेंगे और कोई दूसरी बड़ी जिम्मेदारी संभालेंगे?
डॉ चंद्र ने कहा- मैं भी कुछ समय पहले उनसे मिला था तो थोड़ा सा ऐसे ही बेचैन से रहते थे, साल भर पहले अब तो राज बदल गया राज आ गया राज का एहसास आ गया है और सुपर गवर्नर या सुपर लेफ्टिनेंट गवर्नर की स्थिति में हो गए हैं और तारीफ मिली है, प्रधानमंत्री ने पीठ ठोकी होगी, अमित शाह ने भी अप्रिशिएट किया होगा तो इसमें तो मनोबल उनका डिफरेंट होगा, लेकिन मन तो मन है ना बनारस और गाजीपुर में जाने का तो होता ही है.
सवाल- प्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाटा की अंतिम यात्रा में खुद अमित शाह का शामिल होना और फिर महाराष्ट्र सरकार की तरफ से एक दिन के राजकीय शोक का ऐलान किया जाना महाराष्ट्र चुनाव की पृष्ठभूमि में इन घटनाओं को आप कैसे देखते हैं?
डॉ चंद्र ने कहा- बहुत अच्छा पॉजिटिव गुडविल संकेत है. गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ने भी नरेंद्र मोदी अमित शाह ने एक अच्छा फैसला किया है. आपका योगदान रहा है देश के निर्माण में हम आपका सम्मान करते हैं, अमित शाह का खुद जाना शवयात्रा में शामिल होना एक बड़ी घटना है. उनके जाने का मतलब पूरी सरकार तो फिर हाजरी में रहती है.