सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया की आजादी को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रेस लोकतंत्र का पहरेदार है और इसे अदालत की कार्यवाही को कवर करने से नहीं रोका जा सकता. यह बयान न सिर्फ पत्रकारिता की स्वतंत्रता को मजबूत करता है, बल्कि नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को भी रेखांकित करता है.
'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हर नागरिक का मूल अधिकार'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हर नागरिक का मूल अधिकार है. कोर्ट ने इस बात पर बल दिया कि सरकार या प्रशासन की आलोचना करने से पत्रकारों पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए. यह फैसला प्रेस को बिना डर के सच को सामने लाने की ताकत देता है.
मीडिया संगठनों के खिलाफ गैग ऑर्डर से बचें
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि अदालतों को मीडिया संगठनों के खिलाफ गैग ऑर्डर (प्रकाशन पर रोक) जारी करने से बचना चाहिए. साथ ही, न्यायिक आदेशों की निष्पक्ष आलोचना को अवमानना नहीं माना जा सकता. यह टिप्पणी मीडिया की स्वतंत्रता को संरक्षित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है.
यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब देश में प्रेस की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल उठ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा की, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि लोकतंत्र में विचारों का खुला प्रवाह बना रहे. यह निर्णय पत्रकारिता को साहस और निष्पक्षता के साथ काम करने का हौसला देगा.
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