नई दिल्ली : संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत से पहले, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सोमवार सुबह कहा कि संविधान को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए क्योंकि यह एक सामाजिक और आर्थिक बदलाव का स्रोत है.
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने एएनआई से कहा, "संविधान हमारी ताकत है. यह हमारा सामाजिक दस्तावेज है. इस संविधान की बदौलत ही हमने सामाजिक और आर्थिक बदलाव लाए हैं और समाज के वंचित, गरीब और पिछड़े लोगों को सम्मान दिया है. आज दुनिया के लोग भारत के संविधान को पढ़ते हैं, इसकी विचारधारा को समझते हैं और कैसे उस समय हमने सभी वर्गों, सभी जातियों को बिना किसी भेदभाव के वोट देने का अधिकार दिया. इसलिए हमारे संविधान की मूल भावना हमें सभी को एकजुट करने और साथ मिलकर काम करने की ताकत देती है. इसलिए संविधान को राजनीति के दायरे में नहीं लाना चाहिए."
कोई भी पार्टी संविधान की मूल भावना पर असर नहीं डाल सकती
उन्होंने कहा कि किसी भी पार्टी या विचारधारा की कोई भी सरकार संविधान की मूल भावना (या संरचना) को प्रभावित नहीं कर सकती. बिरला ने कहा कि संविधान में समय-समय पर बदलाव किए गए हैं, लेकिन लोगों के अधिकारों और उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए.
लोकसभा अध्यक्ष विपक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों पर प्रतिक्रिया दे रहे थे कि सरकार संविधान में बदलाव करेगी.
लोकसभा अध्यक्ष ने आगे बताया कि संविधान में बदलाव सामाजिक परिवर्तन के लिए भी किए गए हैं. लोकसभा अध्यक्ष बिरला ने कहा, "लोगों की आकांक्षाओं और अधिकारों तथा पारदर्शिता बनाए रखने के लिए समय-समय पर संविधान में बदलाव किए गए हैं. सामाजिक परिवर्तन के लिए भी बदलाव किए गए हैं. लेकिन किसी भी राजनीतिक दल, किसी भी सरकार ने संविधान की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ नहीं किया है. इसलिए न्यायपालिका को समीक्षा करने का अधिकार है, ताकि मूल ढांचा बना रहे. इसलिए हमारे देश में किसी भी पार्टी की विचारधारा की सरकार संविधान की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकती."
बिरला ने कहा- प्रधानमंत्री समाज के वंचितों के आरक्षण के पक्ष में
उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री ने हमेशा कहा है कि समाज के वंचित, गरीब, पिछड़े लोगों को अभी भी आरक्षण की जरूरत है और इसलिए सरकार संविधान के मूल दर्शन (फिलॉस्फी) के अनुसार काम करती है, ताकि उनके जीवन में खुशहाली आ सके, उनके जीवन में सामाजिक बदलाव आ सके."
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि नियम और परंपराएं दिशा और दृष्टि देती हैं, जो मर्यादा बनाए रखने के महत्व पर केंद्रित हैं.
बिरला ने कहा, "नियम और परंपराएं एक दृष्टि देती हैं, एक दिशा देती हैं. इसीलिए बाबा साहब ने उस समय कहा था कि यह संविधान में आस्था रखने वाले लोगों और इसे लागू करने वालों पर निर्भर करेगा. आज भी, चाहे संविधान हो या संसद, हमारे आचरण में मर्यादा के उच्च मानदंड होने चाहिए. आचरण और सोच के मानदंड जितने ऊंचे होंगे, हम संस्थाओं की गरिमा को उतना ही बेहतर ढंग से बढ़ा पाएंगे... मेरा मानना है कि हमारे सदन की गरिमा और उच्चस्तरीय परंपराओं को बनाए रखने के लिए बहुत कुछ सदस्यों के आचरण और व्यवहार पर निर्भर करता है."
26 नवंबर को लागू हुआ था देश का संविधान
26 नवंबर को मनाए जाने वाले संविधान दिवस पर बोलते हुए, लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि यह बाबा साहब अंबेडकर के त्याग और समर्पण को याद करने का दिन है. बिरला ने बताया कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू संविधान की प्रस्तावना का पाठ करेंगी.
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा, "हमने 26 नवंबर को अपना संविधान अपनाया और यह बाबा साहब अंबेडकर और हमारे संविधान को बनाने वाले लोगों के त्याग और समर्पण को याद करने का दिन है. लोकतंत्र की 75 साल की यात्रा में भारत का लोकतंत्र भी मजबूत हुआ है और वह लोकतंत्र संविधान की मूल भावना से हमारे पास आया है... 26 नवंबर को राष्ट्रपति के नेतृत्व में संविधान दिवस मनाया जा रहा है और राष्ट्रपति संविधान की प्रस्तावना का पाठ करेंगे ताकि हम संविधान के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर सकें और संविधान की मूल भावना और शक्ति लोगों तक पहुंच सके. मुझे उम्मीद है कि यह संविधान दिवस एक जन आंदोलन बन जाएगा और हम सभी संविधान और इसमें योगदान देने वाले लोगों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करेंगे. संविधान के मूल कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को आगे बढ़ाते हुए, हम 'विकसित भारत' के अपने सपने को भी साकार करेंगे."
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