जानें तिरुपति माला के लड्डू की खासियत, 300 साल पुराना है इसे बनाने का तरीका

    तिरुपति माला मंदिर पूरे देश में चर्चित है और इसकी बड़ी प्रतिष्ठा है. बड़ी-बड़ी हस्तियां यहां दर्शन के लिए जाती हैं. यह मंदिर आंध्र प्रदेश के तिरुपति जिले में सेशाचालम पर्वत पर मौजूद है. तिरुपति माला का लड्डू खास है.

    Know the specialty of Tirupati Mala laddu the method of making it is 300 years old
    तिरुपति माला मंदिर/Photo- Internet

    नई दिल्ली : तिरुपति में प्रसाद के रूप में बनने वाला लड्डू विवादों के घेरे में आ गया है. एक लैब की जांच में इसमें बीफ की चर्बी और मछली का तेल पाया गया है, जिसके बाद इस पर बवाल मचा गया है. कांग्रेस ने तो इसकी बकायदा सीआबीई जांच की मांग कर दी है.

    हालांकि आइए जानते हैं कि यह लड्डू इतनी चर्चा में क्यों हैं और इसकी क्या खासियत है. इसे किस तरह से बनाया जाता है.

    जानें किसने बनवाया तिरुपति माला मंदिर और क्यों है खास 

    तिरुपति माला मंदिर पूरे देश में चर्चित है और इसकी बड़ी प्रतिष्ठा है. बड़ी-बड़ी हस्तियां यहां दर्शन के लिए जाती हैं. यह मंदिर आंध्र प्रदेश के तिरुपति जिले में सेशाचालम पर्वत पर मौजूद है. रुतिमला तिरुपति देवस्थान के नाम से जाना जाने वाला दुनिया के सबसे अमीर तीर्थ स्थलों में से एक है. 

    वेंकटेश्वर भगवान के इस मंदिर को राजा तोंडमन ने बनवाया था. बाद में चोल, पांड्या और विजयनगर के राजवंश भी इस मंदिर में अपना योगदान दिए.

    इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा 11वीं सदी में रामानुजाचार्य ने की थी.

    मंदिर में सोने के चढ़ावे की खबरें रहती हैं खास चर्चा में

    इस मंदिर सोने की चढ़ावे की खबरें खास चर्चा में रहती हैं. मंदिर में हर दिन औसतन 1 लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और दान भी देते हैं. मंदिर की दानपेटियों में रुपए के साथ, ज़ेवरात चढ़ाने का भी चलन है. इस चलन के पीछे एक दिलचस्प कहानी है.

    प्राचीन काल से ऐसा माना जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर जब पद्मावती से विवाह रचा रहे थे तो उनके पास धन की कमी पड़ गई. इसके लिए वो धन के देवता कुबेर से 1 करोड़ सोने की गिन्नियां मांगीं.

    इसके बाद से यह मान्यता चली आ रही है कि भगवान वेंकटेश्वर पर अब भी वो कर्ज़ है, जिसे उन्होंने धन के देवता कुबेर से लिए थे. इसलिए श्रद्धालु इस कर्ज़ को चुकाने के लिए यहां दिल खोलकर दान करते हैं.

    तिरुमाला के इस मंदिर हर साल लगभग एक टन सोना चढ़ाया जाता है. ऐसा कहा जाता है के मंदिर के अंदर कई सोने और जेवरात हैं. मजबूत दीवार से घिरा मंदिर के परिसर में फोटोग्राफ़ी की मनाही है.

    यहां का प्रसाद लड्डू रहता है खास चर्चा में, जानें इसके पीछे की कहानी

    यहां चढ़ाए जाने वाले प्रसादों में लड्डू सबसे खास है. इसे खास तरीके से पिछले 300 साल से बनाया जा रहा है. उस विधि को आज भी उसी तरह अपनाया जाता है. लेकिन यह लड्डू अब विवादों में घिर गया है. आइए जानते हैं कि इसे कैसे बनाते हैं.

    इस मंदिर एक गुप्त रसोई घर हैं, जहां पर यह लड्डू तैयार किया जाता है. ये रसोईघर को 'पोटू' कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि यहां हर रोज़ हज़ारों लड्डू बनता है.

    रोजाना बनते हैं साढ़े 3 लाख लड्डू, इन चीजों का होता है इस्तेमाल

    तिरुमला तिरुपति देवस्थानम के अधिकारियों के मुताबिक यहां प्रसाद के तौर पर लड्डू, वडा, अप्पम, मनोहरम और जलेबी श्रद्धालुओं में बांटा जाता है, लेकिन यहां का लड्डू खास महत्व रखता है. यह यहां का सबसे पुराना और लोकप्रिय प्रसाद है. यह प्रसाद के रूप में 300 वर्षों से बांटा जा रहा है.

    तिरुमला में हर दिन साढ़े 3 लाख लड्डू तैयार किए जाते हैं.

    2009 में तिरुपति के लड्डू को जियोग्राफिकल इंडिकेटर (भौगोलिक संकेत) दिया गया था. लड्डू बनाने में चने का बेसन, मक्खन, चीनी, काजू, किशमिश और इलायची का इस्तेमाल किया जाता है और बताया जाता है इस लड्डू को बनाने का तरीक़ा 300 साल पुराना है.

    पहले भी विवादों में रह चुका है यह लड्डू

    वहीं इस लड्डू को लेकर सितंबर 2024 के शुरू में टोकन की व्यवस्था की गई थी, ताकि इसको लेकर मारामारी कम की जा सके. एक लड्डू सबको फ्री में मिलता है. इस लड्डू को पाने की तमन्ना हर किसी की रहती है. एक लड्डू फ्री में प्रसाद के तौर पर दिया जाता है लेकिन अगर आपको और लड्डू चाहिए तो देने होते हैं 50 रुपये.

    आधार कार्ड दिखाने की भी व्यवस्था है, जिसे दिखाकर लड्डू पाया जा सकता है. 

    इससे पहले 2008 तक एक लड्डू के अलावा और चाहिए हो तो 25 रुपये में दो लड्डू दिए जाते थे. इसके बाद इसकी कीमत बढ़ाकर 50 रुपये कर दी गई.

    2023 में इसको लेकर जारी एक नोटिफिकेशन को लेकर विवाद हुआ था, इसमें इसे ब्राह्मणों से ही बनवाए जाने की बात कही गई थी, जिसके बाद विवाद हुआ था.

    तिरुपति लड्डू के नमूने गुजरात स्थित पशुधन प्रयोगशाला में भेजे गए थे. नमूना प्राप्ति की तारीख 9 जुलाई, 2024 थी और प्रयोगशाला रिपोर्ट 16 जुलाई की थी.

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