पीएम मोदी के ब्रुनेई-सिंगापुर दौरे का संपूर्ण विश्लेषण, 'The JC Show'

    भारत 24 के सीईओ और एडिटर इन चीफ डॉ जगदीश चंद्र ने ब्रुनोई और सिंगापुर को लेकर काफी दिलचस्प जानकारियों का खुलासा किया और भारत के लिए इसकी अहमियत पर रोशनी डाली. 

    पीएम मोदी के ब्रुनेई-सिंगापुर दौरे का संपूर्ण विश्लेषण, 'The JC Show'
    हमारा शो द जेसी शो को पोस्टर | Photo- Bharat 24

    नई दिल्ली : भारत 24 के सीईओ और एडिटर इन चीफ डॉ. जगदीश चंद्र के 'The JC Show' का लाखों-करोड़ों दर्शकों को इंतजार रहता है. इस बार The JC Show प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की ब्रुनेई-सिंगापुर यात्रा को लेकर है. इस शो का नाम 'ब्रुनेई-सिंगापुर: नए दोस्त, नई उम्मीद' रखा गया...आइए जानते हैं इस शो में Man of Prediction कहे जाने वाले डॉ. जगदीश चंद्र का विश्लेषण.

    डॉ जगदीश चंद्र ने ब्रुनोई और सिंगापुर को लेकर काफी दिलचस्प जानकारियों का खुलासा किया और भारत के लिए इसकी अहमियत पर रोशनी डाली. 

    गौरतलब है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रुनेई-सिंगापुर की यात्रा पर गए थे, जो किसी भारतीय प्रधानमंत्री की ब्रुनेई की पहली यात्रा थी. वहां उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया. ब्रुनेई दौरे के बाद पीएम मोदी सिंगापुर दौरे पर गए. सिंगापुर में कई व्यापार समझौते पर साइन हुए. 

    आज के इस शो की हेडलाइन है 'ब्रुनेई-सिंगापुर: नए दोस्त, नई उम्मीद', इसके मायने क्या है?

    डॉ जगदीश चंद्र ने कहा प्रधाानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रुनेई-सिंगापुर भारत की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में एक ताजी हवा के झोंके जैसी है. मोदी की परिकल्पना है कि आगे बढ़ो, नए दोस्त बनाओ, नए देशों से जुड़ो, वयापार बढ़ाओ, कूटनीति बढ़ाओ, दिल्ली से बाहर निकलो, ग्लोबल विजन को साकार करो और एक नया संसार बनाओ, जिसमें भारत का डंका हमेशा बजता दिखाई दे. मूल मंत्र यही है नए दोस्त बनाओ, नए को जोड़ो. इसलिए इसे कहते हैं 'नए दोस्त, नई उम्मीद.'

    भारत 24 के सीईओ और एडिटर इन चीफ ने कहा कि यह यात्रा मेरा मानना है कि कई कारणों पर आधारित थी. पहला कारण के है कि तेल को लेकर रूस पर भारत की जो निर्भरता है क्या ब्रुनोई के जरिए ये कम की जा सकती है. अचानक रूस अगर चीन या किसी के प्रभाव में तेल की कटौती करता है तो ऐसे में भारत क्या करेगा. उस विकल्प के रूप में यह यात्रा थी.

    दूसरा कारण रहा होगा कि चाइना की जो साउथ सी पॉलिसी है उसे कंट्रोल करना है. इसमें सिंगापुर का रोल है. सिंगापुर और भारत नेचुरल एलाई (स्वाभाविक सहयोगी) है, ऐसा में चीन को रोकने को कोशिश हो सकती है. 

    तीसरा कारण, व्यापार बढ़ाओ, विस्तार करो, आर्थिक इंटरेस्ट को एडवांस करो है.

    चौथा कारण भी हो सकता है कि एक और मुस्लिम राष्ट्र (ब्रुनोई) में मोदी का डंका बजाओ. मोदी ब्रांड को मुस्लिम देश में और मजबूत करो. 

    ब्रुनेई के साथ द्विपक्षीय समझौतों को पार्टनरशिप में बदलने और कौन से क्षेत्र हैं, जिसमें बात को समग्र तौर से कहा गया?

    डॉ चंद्र ने इस सवाल के जवाब में कहा कि दरअसल जो मौजूदा संबंध हैं, उसे बढ़ाना मकसद है. रूस डिफेंस, ट्रेनिंग आदि में ब्रुनोई को सपोर्ट करता है. ट्रेड और इन्वेस्टमेंट में इन बातों को लिया जा सकता है. टेक्नोलॉजी, रिन्यूअल एनर्जी को लेकर इसके तहत बात की जा सकती है. यह  स्वागतयोग्य कदम है. 

    क्या ब्रुनोई की यात्रा, भारत की पहली यात्रा थी? और क्या जो इस तरह के देश रह गए हैं वहां भी मोदी यात्रा करेंगे?

    इस सवाल को जवाब में डॉ चंद्र ने कहा कि वैसे तो नरेंद्र मोदी यहां तीन बार जा चुके हैं. लेकिन जो द्वपक्षीय यात्रा है वह पहली थी. वहां 14 हजार भारतीय रहते हैं. भारत के संबंध इनके साथ शुरू से अच्छे थे, लेकिन अब इन संबंधों को और मजबूत किया जा रहा है. 

    जहां तक बचे हुए देशों की पहली यात्रा का सवाल है तो नरेंद्र मोदी में ये उत्साह रहता है कि नये देशों में संबंध खोजे जाएं. कम से कम अब 10 ऐसे राष्ट्रों हैं जहां वह यात्रा कर चुके हैं. यूक्रेन, पोलैंड की ऐसी ही यात्रा है. इसी तरह नेपाल, श्रीलंका और फिज़ी की उनकी यात्रा है. इस तरह की वह खोजी यात्राएं करते हैं. 

    प्रधानमंत्री जब विदेश यात्रा पर होते हैं तो वह एक अलग अंदाज औ प्रसन्न मिजाज में होते हैं, ऐसा क्यों है?

    "वह चाहे देश में हों या ब्रुनोई में सब जगह एक ही जैसे रहते हैं. हां, दूसरे देशों में जाने पर जिस तरह से उनका स्वागत किया जाता है, उससे वह भावुक हो जाते हैं. इसके अलावा वहां रह रहे भारतीयों से उनकी मिलने की इच्छा होती है. आप देखते होंगे कि लोग कैसे उनसे मिलने के लिए उत्साहित होते हैं. उनका माइंड इस समय ग्लोबल हो चुका है."

    ब्रुनोई में वहां के सुल्तान का पीएम को लग्जरी पैलेस ले जाना, प्राइवेट डिनर देना और प्रोटोकॉल तोड़कर मिलना इसके क्या मायने हैं?

    उन्होंने कहा कि यह मोदी की एक ग्लोबल इमेज है. विश्व के नेताओं में इस बात को लेकर उनमें एक आकर्षण दिखता है. ट्विटर, फेसबुक पर भी वह काफी पॉपुलर हैं. वह दुनिया में नंबर 1 पर हैं. रही बात डिनर की तो हां, वहां काफी भारतीय डिशेज को छांट-छांटकर बनाया गया था. 

    रही बात सुल्तान के महल की तो वहां राजशाही है. उनके महल की कीमत 50 अरब डॉलर है. खबरों में पढ़ा कि उसमें 1788 कमरे हैं, 257 बाथरूम हैं. 2 लाख वर्गमीटर में बना हुआ है. गिनीज ऑफ वर्ल्ड बुक में उसका नाम है. मोदी तो झोपड़ी में भी जाते हैं, महल में भी. वह तो फकीर हैं. इससे भारतीयों को गर्व होता है. 

    ब्रुनोई के सुल्तान में ऐसा क्या है जो टॉप ऑफ द लाइफ बने हुए हैं, उनकी लाइफस्टाइल कैसी है?

    एक तो मैंने सुना है के उनके पास 7 हजार कारों का काफिला है. दूसरी बात सुनी है कि उनका नाई लंदन से आता है दाढ़ी-बाल बनाने. हर महीने उसका 16 लाख रुपये खर्चा है. चार्टर्ड विमान उस नाई को लेने जाता है. ये उनका जीने का अंदाज है. वह एक अमीर देश है और सुल्तान के बारे में कंट्रोवर्सी नहीं है. 

    ब्रुनोई में डिक्टेरशिप रही है. वहां सिविल राइट्स की क्या स्थिति है?

    "सिविल राइट्स की स्थिति वहां अच्छी नहीं है. राजशाही है. 1962 से वहां पर आपातकाल लगा है. वहां पर कोई विपक्ष ही नहीं है. जैसा कि पत्रकार कहते हैं कि वहां राजा की जबान ही कानून है. कई पत्रकारों को जेल भी भेजा गया है." 

    अपनी ब्रुनोई यात्रा से मुस्लिम राष्ट्र को मोदी कोई संदेश देना चाहते हैं?

    डॉ जगदीश चंद्र ने कहा, गुजरात में सीएम रहने के दौरान एक माहौल बनाया गया था कि मोदी विदेश नहीं जा सकते. अमेरिका नहीं जा सकते. ऐसा कहा जाता था कि बीजेपी और मोदी एंटी मुस्लिम हैं. मोदी ने इस मिथ को तोड़ा है. अब यह पुरानी बात हो गई है. उनका मैसेज सेक्युलर होता है. संदेश होता है कि धर्म की बात छोड़िए. बिजनेस को आगे बढ़ाइए. यह एक बढ़िया विचार है.

    मुस्लिम राष्ट्रों में मोदी इतने लोकप्रिय क्यों है?

    "ये उनकी कमेस्ट्री, करिश्मा, ग्लोबल लीडर की इमेज और डिलीवरी है. 140 करोड़ लोगों का प्राइम मिनिस्टर होना है. मनोवैज्ञानिक रूप से सामने वाले को डॉमिनेट करते हैं. उनका क्रेज ग्लोबल हो गया है. मुस्लिम राष्ट्र इसका अपवाद नहीं हैं. बीजेपी की जिस तरह हिंदू पार्टी की इमेज है उस लिहाज से यह बड़ी बात है. एक प्रोग्रेसिव इमेज उनकी इन राष्ट्रों में बनी है."

    मोदी मुस्लिम देशों में जाते हैं तो वहां के मस्जिदों में जरूर जाते हैं क्या यह उनकी सेक्युलर पॉलिसी है?

    ये उनका क्रेज और कन्विक्शन है. उनकी पार्टी में कट्टरपंथी लोग भी हैं. वह एक इंटरनेशनल डिग्निटी के साथ चलते हैं. मस्जिद में तो जाना एक कदम और आगे की बात है. 16 से 17 मुस्लिम देशों में जा चुके हैं, ज्यादातर के मस्जिद में गए हैं. ब्रुनोई में संसार की सबसे बड़ी मस्जिद में भी गए. ऐसे यूएई, सौदिया, मिस्र की मस्जिदों में गए. लिहाजा यह बनाई गई इमेज के खिलाफ है, जो कि सही है. 

    मुस्लिम राष्ट्र में उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया गया, इस घटना को आप कैसे देखते हैं?

    ये भी किसी चमत्कार से कम नहीं है. यह केवल मुस्लिम राष्ट्र में ही नहीं. उन्हें रूस ने भी सर्वेश्रेष्ठ सम्मान दिया, एक अमेरिका में मिला और कुछ गैर मुस्लिम देशों में. यह उन देशों का भारत के प्रति अच्छी भावना को दिखाता है. यह एक प्रगतिशील सोच है.

    दक्षिण-पूर्वी एशिया की राजनीति में भारत की इतनी दिलचस्पी क्यों बढ़ रही है, क्या भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी का मजबूत होना भी है?

    डॉ चंद्र ने कहा कि निश्चित रूप से नरेंद्र ग्लोबल साउथ के लीडर बनना चाहते हैं. चीन का साउथ सी का जो इश्यू है, वह अंतर्राष्ट्रीय चिंता का विषय है. चाइना विस्तारवादी है. सी के मसले में कहता है कि 90 प्रतिशत एरिया उसका है. भारत का 55 प्रतिशत ट्रेड इसी रास्ते से होता है. इसके अलावा, दुनिया के और देशों का ट्रेड भी. मलेशिया, फिलीपीन्स, ब्रुनोई जैसे देशों की इसको लेकर चिंता है. बाकी छोटे देशों की, जिनकी आवाज नहीं है, नरेंद्र मोदी उन्हें आवाज देना चाहते हैं. दक्षिण एशिया में उनके एक्टिव होने का ये मुख्य कारण है और चीन के इन देशों में बढ़ रहे प्रभाव को रोकना है. 

    सिंगापुर में जो जॉइंट स्टेटमेंट आय उसमें कहा गया है कि यहां फ्री नेविगेशन होना चाहिए. फ्लाइट फैसिलिटीज मिलनी चाहिए. साउथ सी चाइना बड़ा इश्यू है नरेंद्र मोदी उसमें लीड ले रहे हैं. 

    चीन के साउथ सी के मुकाबले भारत-मलक्का जल डमरू मध्य के ट्रंप कार्ड को कैसे देखते हैं?

    इसको लेकर एक कहावत है कि भारत के लोगों ने चीन की गर्दन पर पांव रख दिया है. ये एरिया इंडिया के करीब ज्यादा होने से भारत के प्रभाव में ज्यादा है. चाइना का सारा तेल इसी रूट से जाता है. कल किसी झगड़े की स्थिति में अगर भारत इसे रोक दे तो चीन बैठ जाएगा. ये दोनों देशों का अपना-अपना ट्रंप वार है. देखते हैं कि आगे क्या होता है. ईश्वर न करे कि ऐसा कोई टकराव आए.

    चीन भारत की आर्थिक नींव को हिलाने में जुटा हुआ है क्या आप इस पर कुछ कहना चाहते हैं?

    हां, यह एक समस्या है. भारत में चीन का नकली माल एक तरह की समस्या है. इससे भारतीय बाजार, छोटे उद्योग टूट रहे हैं. फैक्ट्रियां बंद हो रही हैं. बेरोजगारी बढ़ रही है. सरकार कुछ ठोस कर नहीं पा रही है. अमेजन से 1 करोड़ व्यापरी इसी चीन के माल से परेशान थे. नरेंद्र मोदी ने मेड इन इंडिया का एक विकल्प निकाला है. उसका असर हुआ है, चीन परेशान है. चीन नये मार्केट ढूढ़ रहा है अब माल बेचने का. अब उसने अफ्रीका को एक नया मार्केट बनाया है. 50 अफ्रीकी देशों के साथ उसने एक मीटिंग की. उसने कहा कि लोन के रूप में हम आपको 50 अरब डॉलर देंगे. इस तरह चीन नये देशों में घुस रहा है. 

    क्या भारत-चीन सीमा का तनाव कभी वार में तो नहीं बदल जाएगा?

    अब युद्ध का समय नहीं है. हां लेकिन भारत दबाव में नहीं आया है. भारत की तैयारी पूरी है. अगर हमले की स्थिति बनी तो भारत भी उसका जवाब देगा. विदेश मंत्रालय की मानें तो सीमा पर सब कुछ बहुत ठीक नहीं है. लेकिन दोनों तरफ से डेप्लोमैटिक गेम चल रहा है. चीजें कंट्रोल में हैं. 

    भारत यूक्रेन को लेकर मध्यस्थ बने, इस पर आपका क्या कहना है?

    यह बहुत बड़ा घटनाक्रम है. यह मोदी को तवज्जो देने वाली बात है, एक ग्लोबल मीडिएटर के तौर पर. यह दिल्ली में हो तो ठीक है. मैंने इससे पहले के शो में भी कहा था. यह बहुत बड़ी बात है. दोनों देश नरेंद्र मोदी की मध्यस्थता को स्वीकार कर रहे हैं. इससे पहले ये काम अमेरिका करता था, रूस करता था. अगर ऐसा हुआ तो नरेंद्र मोदी नोबेल प्राइस के एंट्री गेट पर होंगे. 

    मोदी की सिंगापुर यात्रा भारत के लिए अहम क्यों है?

    सिंगापुर साउथ एशिया के लिए भारत का ब्रिज है. भारत की ग्रोथ स्टोरी में सिंगापुर एक नेचुरल पार्टनर है. जो एफडीआई आती है उसमें सिंगापुर छठे नंबर पर है. पीयूष गोयल ने जैसा कहा था कि इस 12 हजार करोड़ डॉलर को अगले पांच साल में 5 गुना बढ़ा देंगे मतलब 60 हजार करोड़ डॉलर करेंगे. सी रूट के हिसाब से सिंगापुर की लोकेशन बहुत स्ट्रैटजिक है. ईस्ट-वेस्ट का रूट है. संसार के सब देश इससे कहीं न कहीं से जुड़े हुए हैं. भारत ने सिंगापुर से रिश्ते को और मजबूत किया है. 

    सिंगापुर में नरेंद्र मोदी की यात्रा में 4 एमओयू साइन हुए हैं, इस पर आप क्या कहेंगे?

    डॉ चंद्र ने कहा कि इससे भी ज्यादा अहम है कि सिंगापुर में जो 18-20 बिजनेस लीडर से मीटिंग हुई, उन्हें भारत इनवाइट किया, वो काफी अहम है. आने वाले समय में दोनों देशों के बीच ट्रेड का लेवल दोगुना होगा. इसमें किसी को संशय नहीं. अगले कुछ सालों में बड़ी मात्रा में एफडीआई आ सकता है. 

    पीएम मोदी ने कहा- उन्हें भारत में कई सिंगापुर बनान है, इसके मायने क्या हैं?

    सिंगापुर के विकास की जो स्टोरी है वो बाकी देशों के लिए प्रेरणा है. नरेंद्र मोदी का इस बात को कहना बड़ी बात है. सिंगापुर के पार्क, बड़ी इमारत आदि सब एक पहचान बन गई हैं. इसका मतलब है कि सिंगापुर जैसे भारत में बड़े से बड़े प्रोजेक्ट आएं. कहीं न कहीं इसके पीछे भाव है कि हम सिंगापुर को पीछे छोड़ दें. 

    क्या सिंगापुर से हमारे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध भी रहे हैं?

    हां, दो पुरानी सभ्यताएं हैं. आपस में जुड़ी हुई हैं. दिवाली पर सिंगापुर में नेशनल होली डे होता है. वहां काफी मंदिर भी हैं. यह साउथ के प्रदेशों, खासकर केरल से जुड़ा हुआ है. काफी तौर से इस तरह से वे एक दूसरे से जुड़े हैं. 

    सिंगापुर दौरे पर पीएम मोदी ने बनारसी पान का जिक्र किया, इसे आप कैसे देखते हैं?

    जब भी पान का जिक्र आता है तो बनारसी पान की बात होती है. वहां भी ऐसा जिक्र हुआ तो बनारसी पान की बात आई. उन्होंने कहा कि अगर बनारसी पान का आनंद लेना है तो आइए बनारस में निवेश कीजिए. कोई बड़ी बात नहीं कोई विदेश का आदमी पान की बड़ी फैक्ट्री वहां खोल दे. इसी तरह कीनू, संतरे और आम का एक्सपोर्ट पहले हो चुका है. कल को पान का भी एक्सपोर्ट हो सकता है. 

    सिंगापुर में मुस्लिम आबादी क्यों घटती जा रही है?

    वहां यह कोई मुद्दा तो नहीं है. बल्कि सिंगापुर दुनिया का मोस्ट सेक्युलर देश है. वहां कोई हिंदू मुस्लिम जैसा बात नहीं, कोई लोकल कास्ट का मुद्दा नहीं है. यह संयोग ही होगा, ऐसी कोई बात या वजह नहीं लगती. 

    प्रधानमंत्री की ब्रुनोई और सिंगापुर की यात्रा का मीडिया में किस तरह का कवरेज रहा?

    मीडिया में अच्छी कवरेज रही. मोदी प्रोजेक्शन के लिए मास्टर सोच रखते हैं, खासकर देश से बाहर. भारत के अखबारों ने इस बार काफी साथ दिया. यहां तक कि इंडियन एक्सप्रेस में तीन कॉलम की लीड देखी. टाइम्स ऑफ इंडिया में लीड खबर थी. हिंदुस्तान टाइम्स में लीड खबर थी. किसी को शिकायत नहीं होनी चाहिए कि मीडिया उसका उचित साथ नहीं देता.  

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