पितृ दोष से मुक्ति कैसे पाएं? जानिए गरुड़ पुराण और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार उपाय

    Pitru Dosh Upay: हमारे जीवन में कई बार ऐसी घटनाएं घटती हैं, जिनके पीछे कोई तर्क या कारण समझ नहीं आता. सुख आते-आते लौट जाते हैं, संतानें सफल नहीं हो पातीं, घर में सुख-शांति टिकती नहीं और रोग, दुर्घटनाएं या मानसिक अशांति लगातार बनी रहती है.

    How to get rid of Pitra Dosh Know the remedies according to Garuda Purana and astrology
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    Pitru Dosh Upay: हमारे जीवन में कई बार ऐसी घटनाएं घटती हैं, जिनके पीछे कोई तर्क या कारण समझ नहीं आता. सुख आते-आते लौट जाते हैं, संतानें सफल नहीं हो पातीं, घर में सुख-शांति टिकती नहीं और रोग, दुर्घटनाएं या मानसिक अशांति लगातार बनी रहती है. इन सभी अनुभवों के पीछे एक अदृश्य कारण हो सकता है, ‘पितृ दोष’.

    ‘पितृ दोष’ कोई शाप नहीं, बल्कि एक चेतावनी है, हमारे पूर्वजों की आत्मा से, या उन कर्मों से जो पूर्वजों द्वारा या स्वयं हमारे द्वारा किए गए हैं, जिनका प्रायश्चित या तर्पण नहीं हुआ. यह दोष कर्मों का ऋण होता है, जो तब तक पीछा करता है जब तक उसका संतुलन और शांति न हो जाए.

    पितृ दोष कब तक बना रहता है?

    कुछ मान्यताओं के अनुसार पितृ दोष सात पीढ़ियों तक बना रह सकता है, लेकिन असल में इसका कोई निश्चित काल नहीं होता. जब तक दोष की सत्कार्य और श्रद्धा से शांति नहीं की जाती, यह किसी न किसी रूप में परिवार में कष्ट देता रहता है. हर परिवार में हर सदस्य इससे प्रभावित नहीं होता, लेकिन जिसकी कुंडली में शुभ संचित कर्म बलवान नहीं होते, वह इसकी चपेट में आ सकता है.

    पितृ दोष के प्रमुख लक्षण

    • जीवन में अकारण असफलता और बाधाएं
    • घर में कलह, मानसिक तनाव और दुर्घटनाएं
    • संतान की उन्नति रुकना या विवाह में देरी
    • बार-बार स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं
    • घर का वातावरण भारी और अशुभ अनुभव होना

    पितृ दोष का कारण क्या है?

    गरुड़ पुराण और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पितृ दोष कई कारणों से उत्पन्न हो सकता है:

    • पूर्वजों द्वारा अत्याचार, हत्या या अधर्मपूर्ण कार्य
    • पितरों का तर्पण न होना या श्राद्ध न किया जाना
    • कुलदेवता की उपेक्षा
    • कुंडली में सूर्य के साथ राहु या केतु का अशुभ संयोग, विशेष रूप से द्वितीय, अष्टम और दशम भाव में

    गरुड़ पुराण के अनुसार पितृ दोष निवारण के उपाय

    श्रद्धा और सेवा के मार्ग से समाधान संभव है:

    पितृपक्ष में श्राद्ध व तर्पण करें
    – पवित्र भाव से पितरों को जल, तिल और भोजन अर्पित करें.

    ब्राह्मण भोज और दान
    – खीर, वस्त्र और दक्षिणा सहित ब्राह्मणों को भोजन कराएं.

    कुल देवी-देवता की पूजा करें
    – उनका आशीर्वाद पाकर दोषों का शमन होता है.

    महामृत्युंजय जाप और हवन
    – विशेष रूप से रोग और मृत्यु के भय से मुक्ति के लिए.

    सवा लाख पार्थिव शिवलिंग पूजन
    – यह अत्यंत फलदायी माना गया है.

    जरूरतमंदों की सेवा करें
    – वृद्धाश्रम, अनाथालय या गौशालाओं में दान और सेवा करें.

    जन्म-जन्मांतर के ऋणों को करें शांत

    पितृ दोष कोई दंड नहीं, बल्कि एक अवसर है, अपने उन पूर्वजों की आत्मा को शांति देने का, जिन्होंने कभी हमें यह जीवन देने की नींव रखी. श्रद्धा, सेवा और सत्कर्मों के द्वारा ही हम इस बंधन से मुक्ति पा सकते हैं. क्योंकि जब पितर प्रसन्न होते हैं, तो घर में लक्ष्मी, संतान और शांति का वास होता है.

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