नई दिल्ली : कल वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश हुए केंद्रीय बजट 2024 की इकोनॉमिस्ट (अर्थशास्त्री) ने जहां आलोचना की है, वहीं मार्केट एक्सपर्ट की इस पर मिली-जुली प्रतिक्रिया है. जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के रिटायर्ड प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा लोकसभा चुनाव से सरकार ने सबक नहीं लिया है. जबकि मार्केट के विशेषज्ञों ने बजट को संतुलित बताया है.
अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने एक वेबसाइट के लिए लिखे अपने लेख में कहा है, "हाशिए पर पड़े लोगों (गरीबों) के लिए बजट में धन का आंवटन नहीं किया गया है. सरकार ने लोकसभा चुनाव से सबक नहीं लिया. किसानों, युवा, गरीबों ने अपने वोट से जताया था कि वे सरकार के काम से संतुष्ट नहीं, लेकिन उसने इस बात को नजरंदाज कर दिया."
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला है. वह पूर्ण बहुमत के आंकड़े 272 के नीचे रह गई. उसने कुल 240 सीट ही हासिल किया है. वह अपने प्रमुख सहयोगी दल जेडीयू और टीडीपी की सीटों पर निर्भर है. एनडीए को मिलाकर 293 सीटें हासिल की है. वहीं इंडिया गठबंधन को 234 सीटें मिली हैं, जिसकी तरफ अर्थशास्त्री अरुण कुमार इशारा कर रहे हैं.
वहीं चंडीगढ़ में सीआईआई के चेयरमैन राजीव कायला ने बजट 2024 को पॉजिटिव बताया है. हालांकि उन्होंने कहा कि इस बजट में कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया है, लेकिन युवाओं, महिलाओं, किसानों और इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर ये पॉजिटिव दिशा में है.
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अप्रेंटिशिप और इंटर्नशिप करके भी लोग बेरोजगार रहेंगे : अरुण कुमार
अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने अपने लेख में कहा है, "बेरोजगारी से युवा परेशान हैं, लेकिन इसको लेकर कोई सीधा कदम बजट में नहीं उठाया गया है. इसके लिए कदम उठाया जाना चाहिए था. रोजगार और कौशल की बात की गई है इसमें अप्रेंटिशिप और इंटर्नशिप की बात है जो की अच्छी दिशा है. लेकिन रोजगार पैदा किए बने ये प्रशिक्षित लोग बेरोजगार ही बने रहेंगे."
"रोजगार के लिए पूंजी को श्रम क्षेत्र को प्रोत्साहित करने में लगाना चाहिए था. जबकि मनरेगा के आवंटन में वृद्धि नहीं की गई है."
किसानों के लिए 1.52 करोड़, लेकिन पिछले साल से मामूली इजाफा
उन्होंने अपने लेख में कहा, "फरवरी के चुनाव से पहले के बजट से सरकार ने सबक नहीं लिया. किसानों के लिए 1.52 करोड़ की घोषणा की गई है, लेकिन यह पिछले साल से केवल 8 फीसदी ज्यादा है और जो अंतरिम बजट से केवल 4 प्रतिशत अधिक है. महंगाई को कंट्रोल करने के लिए शायद ही बजट में कोई वृद्धि की गई है."
"वहीं अंतरिम बजट की तुलना में ग्रामीण विकास के लिए कोई वृद्धि नहीं की गई है, यह मात्र पिछले साल से 11.3 प्रतिशत है और ध्यान देने वाली बात है कि यह इजाफा 2 साल बाद किया गया है. जो कि औसतन 5.6 प्रतिशत की वृद्धि है, जो महंगाई से थोड़ा ही अधिक है."
'शिक्षा-स्वास्थ्य क्षेत्र में रोजगार पैदा किया जा सकता है, लेकिन आवंटन नहीं'
प्रोफेसर अरुण कुमार सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में धन देकर रोजगार पैदा करने की सलाह देते हैं. उन्होंने अपने लेख में लिखा है, "शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में रोजगार पैदा किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए पर्याप्त धन नहीं दिया गया है. स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए किया गया आवंंटन अंतरिम बजट से कम है और शिक्षा के लिए मामूली रूप से अधिक है जो कि पर्याप्त नहीं है."
पूर्वोत्तर के लिए बजट में नहीं किया गया आवंटन : अर्थशास्त्री अरुण कुमार
वह लिखते हैं, "पूर्वोत्तर के विकास के लिए पिछले साल और अंतरिम बजट दोनों की तुलना में आवंटन नहीं किया गया है."
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की बात की आलोचना करते हुए प्रोफेसर कुमार लिखते हैं. "अगर वित्तमंत्री का यह कहना है कि अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी जा रही है, तो यह 2024-25 के पूर्ण बजट में दिखाई नहीं दे रहा है."
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'ऊर्जा बचत के लिए सुसंसगत सोच की कमी, दिख रहा विरोधाभास'
ऊर्जा बचत करने के सरकार के कदम की आलोचना करते हुए वे लिखते हैं, "हमें ऊर्जा संरक्षण के लिए छोटे शहरों और सार्वजनिक परिवहन की ओर रुख करना चाहिए था इससे ऊर्जा की बचत होती, लेकिन सरकार बड़े शहरों और निजी वाहनों की ओर बढ़ रही है."
"दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार के कार्यक्रमों में विरोधाभास बहुत ज्यादा है. यह सुसंगत सोच की कमी के कारण है."
जीडीपी इजाफे के लिए की अमीरों पर अधिक टैक्स लगाने की वकालत
वह लिखते हैं, "RBI से प्राप्त 2.1 लाख करोड़ रुपये के अलावा, प्रत्यक्ष-कर-जीडीपी अनुपात को बढ़ाने का कोई प्रयास नहीं किया गया है. यह देखते हुए कि महामारी के बाद से अमीरों की संपत्ति और आय में भारी वृद्धि हुई है, उन पर टैक्स लगाने के लिए और अधिक प्रयास किए जा सकते थे."
"सट्टेबाजी पर अंकुश लगाने के लिए पूंजीगत लाभ कर में बदलाव सही होता. अल्पकालिक पूंजीगत लाभ कर को और अधिक बढ़ाने की आवश्यकता थी, जबकि दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ की परिभाषा लंबी अवधि के लिए होनी चाहिए थी."
निजी निवेश में वृद्धि नहीं, जिसकी भारत को जरूरत : अरुण कुमार
प्रोफेसर कुमार का कहना है, "कोई आश्चर्य नहीं कि निजी निवेश में वृद्धि नहीं हो रही है - जैसा कि भारत को तेज विकास के लिए चाहिए."
वह आखिर में कहते हैं, "हाशिए पर पड़े वर्गों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त रूप से अधिक धन आवंटित कर फिर से प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए थीं, लेकिन वह 2024-25 के बजट में दिखाई नहीं दे रही हैं. यह एक और अवसर का चूक जाना है."
मार्केट एक्सपर्ट की मिली-जुली प्रतिक्रिया, बजट को बताया बैलेंस
मार्केट एक्सपर्ट गुरमीत चड्ढा ने कहा, "बजट में बैलेंस लाया गया है जो कि अच्छा है. लंबी अवधि के लिए पूंजीगत टैक्स बढ़ाना तर्कसंगत नहीं है. जोखिम भरी पूंजी और नॉर्मल पूंजी के बीच अंतर करना चाहिए था. जोखिम वाली पूंजी अर्थव्यवस्था की जरूरत है, इसका लंबा असर पड़ता है."
उन्होंने कहा, "पिछले 10 साल को देखें तो पहले डेट फंड्स से इंडेक्सेशन गया, इसके बाद स्टांप ड्यूटी लाई गई. डिविडेंड पर दोगुना टैक्स लगाया गया है. मुझे लग रहा है कि हम 20% के लंबी अवधि के कैपिटल गेन टैक्स की तरफ जा रहे हैं. पर हां, बजट के बाकी पहलू अच्छे हैं.'
नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष ने रोजगार, कौशल के लिए कदम को बताया अच्छा
नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने बजट की तारीफ करते हुए कहा कि यह देखकर अच्छा लगा कि सरकार ने रोजगार और कौशल विकास को पहली प्राथमिकता दी है.
कुमार ने कहा, “इससे जाहिर होता है सरकार जमीनी स्तर पर काम कर रही है और वह कुछ अर्थशास्त्रियों की तरह बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करने के झूठे दावों से वह बेअसर है.”
प्रोफेसर पिनाकी चक्रवर्ती ने कहा- राजकोषीय प्रबंधन जारी रखना होगा
एनआईपीएफपी के प्रोफेसर पिनाकी चक्रवर्ती ने न्यूज एजेंसी पीटीआई-भाषा से कहा, "केंद्र सरकार के ऋण और घाटे को राजकोषीय दायित्व और बजट प्रबंधन एक्ट के अनुरूप काम करने के लिए राजकोषीय समझदारी के स्थिर मार्ग पर चलना जारी रखना होगा."
उन्होंने कहा कि बजट में इनकम टैक्स एक्ट 1961 की व्यापक समीक्षा की बात कही गई है.
एनआईपीएफपी के प्रोफेसर एन आर भानुमूर्ति ने पीटीआई-भाषा से कहा, "केंद्रीय बजट 2024-25 मोटे तौर पर अंतरिम बजट को ही आगे बढ़ाया गया है, जिसमें कुछ बेहतर राजकोषीय गुंजाइश के साथ-साथ नौकरियों की ओर भी ध्यान दिया गया है."
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