पलक्कड़ (केरल) : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने सोमवार को कहा कि जाति आधारित जनगणना का इस्तेमाल केवल उन समुदायों या जातियों की बेहतरी के लिए किया जाना चाहिए जो राजनीति या चुनावी कवायद के बजाय पिछड़ रहे हैं.
आरएसएस समन्वय बैठक 31 अगस्त को केरल के पलक्कड़ में शुरू हुई और आज संपन्न हुई है.
आरएसएस समन्वय बैठक के समापन दिवस पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए आंबेकर ने कहा कि जाति और इससे जुड़े मुद्दे बहुत संवेदनशील हैं और इनसे बहुत गंभीरता से निपटा जाना चाहिए क्योंकि ये हमारी "राष्ट्रीय एकता" और "अखंडता" के मुद्दे हैं.
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उन्होंने कहा, "आरएसएस के रूप में हमने पहले ही इस मुद्दे पर टिप्पणी की है. हमारे हिंदू समाज में, हमारी जाति और जाति संबंधों का एक संवेदनशील मुद्दा है... यह हमारी राष्ट्रीय एकता और अखंडता का एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, इसलिए इसे बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए, न कि केवल चुनाव, चुनाव प्रथाओं या राजनीति के आधार पर."
जातियों के मुद्दे हल हों, आंकड़े राजनीतिक औजार न बनें : आंबेकर
उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने पहले ही आंकड़े ले लिए हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल केवल उन समुदायों या जातियों के सामने आ रहीं मुश्किलों को हल करने के लिए लिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "निश्चित रूप से, सभी कल्याणकारी गतिविधियों के लिए, विशेष रूप से किसी विशेष समुदाय या जाति को एड्रेस करने के लिए, जो पिछड़ रही हैं और जिस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, इसलिए यदि कभी सरकार को आंकड़ों की आवश्यकता होती है, तो वह उन्हें ले सकती है. इसने (सरकार ने) पहले भी (संख्याएं) ली हैं; यह ले सकती है, कोई समस्या नहीं है. लेकिन यह केवल उन समुदायों और जातियों के हित को ध्यान में रखते हुए लिए जाने चाहिए. इसका इस्तेमाल चुनाव प्रचार के लिए एक राजनीतिक औजार के रूप में नहीं किया जाना चाहिए. और इसलिए हमने सभी के लिए एक आगाह करने वाली लाइन बनाई है."
कोलकाता में रेप-हत्या मामले में 5 कदमों पर होगा काम
आंबेकर ने यह भी बताया कि बैठक के दौरान सदस्यों ने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक पोस्ट ग्रेजुएट ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना पर गहन चर्चा की, जिसके बाद उन्होंने "पांच कदम" तय किए हैं, जिन पर वे इस मुद्दे को उठाएंगे.
उन्होंने कहा, "यह निष्कर्ष निकाला गया कि हमें इस मुद्दे को पांच मोर्चों पर उठाना होगा. कानूनी तौर पर, हम इस मुद्दे से कैसे निपट सकते हैं; दूसरा, हम समाज में जागरूकता कैसे पैदा कर सकते हैं... फिर परिवार में 'संस्कार'. हर परिवार में, हम ऐसा माहौल और 'संस्कार' बना सकते हैं, जिससे हमारा समाज ऐसे कुख्यात लोगों से मुक्त हो जाए. फिर हमारी शिक्षा, औपचारिक और अनौपचारिक, जहां हमें इस मुद्दे की संवेदनशीलता के बारे में शिक्षित करना है. उसके बाद 'आत्मरक्षा', जिसमें आत्मरक्षा कौशल और गतिविधियां हैं. इस तरह की प्रशिक्षण गतिविधियों की स्कूल स्तर, कॉलेज स्तर आदि पर आवश्यकता है."
मीडिया से मिलने वाले कंटेंट ने मचाई है इस तरह की तबाही
उन्होंने आगे कहा कि सभी प्रकार के मीडिया से आने वाली कंटेट ने "तबाही" पैदा की है, क्योंकि यह देखा गया है कि जो लोग इस तरह की घटनाओं में शामिल हैं, वे लंबे समय से ऐसी कंटेंट देख रहे थे. "एक और बात यह है कि सभी प्रकार के मीडिया से आने वाली कंटेंट तबाही मचाई है...क्योंकि ऐसे कंटेंट देखने के बाद, हम देख सकते हैं कि जो लोग इसमें शामिल हैं, वे लंबे समय से ऐसी कंटेंट देख रहे हैं.
उन्होंने कहा, इस मुद्दे को बहुत गंभीरता से लिया गया और बहुत गंभीरता से नोट किया गया और सभी संगठनों ने इस पर गहन चर्चा की. वे इस मुद्दे को अपने संगठन में उठाएंगे और इस दिशा में अपना कार्यक्रम लेकर आएंगे."
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