नई दिल्ली: हाल ही में वैलेंटाइन वीक के दौरान जहां एक तरफ प्यार और रिश्तों को लेकर चर्चाएं हो रही थीं, वहीं दिल्ली हाईकोर्ट ने युवाओं के रोमांटिक और सहमति से बने रिश्तों को लेकर अहम और सकारात्मक टिप्पणी की है. अदालत ने कहा है कि 18 साल से कम उम्र के लड़के-लड़कियों को अपने रिश्तों के बारे में फैसला लेने की पूरी आज़ादी होनी चाहिए, बशर्ते वह सहमति से बने हों और इनमें कोई भी जबरदस्ती न हो.
किशोरों के प्यार को मान्यता देने की जरूरत
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस जसमीत सिंह की बेंच ने यह फैसला सुनाया कि किशोरावस्था में बने सहमति से शारीरिक संबंधों को अपराध मानना सही नहीं है. अदालत ने कहा कि समाज और कानून दोनों को इस बारे में अपनी सोच बदलने की जरूरत है और युवा व्यक्तियों के रोमांटिक रिश्तों के अधिकारों को सम्मानित किया जाना चाहिए. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह रिश्ते पूरी तरह से सहमति से बने होने चाहिए, ताकि किसी प्रकार का शोषण या दुर्व्यवहार न हो.
प्यार और इमोशनल कनेक्शन का अधिकार
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि प्यार एक प्राकृतिक अनुभव है, जिसे हर किसी को महसूस करने का अधिकार होना चाहिए. किशोरों को इमोशनल कनेक्शन बनाने का अधिकार मिलना चाहिए, और इसका समर्थन करना कानून का भी दायित्व है. कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि ये रिश्ते सहमति से और जबरदस्ती से मुक्त हों, तो इन्हें एक सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना चाहिए.
क्या था मामला?
यह मामला 2014 से संबंधित एक केस का था, जब एक लड़की के पिता ने यह शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी बेटी घर लौटने के बजाय एक लड़के के साथ चली गई थी. लड़के की उम्र 18 साल से ज्यादा थी, और उसे POCSO अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था. लेकिन, लड़की ने अदालत में बयान दिया कि उनका संबंध पूरी तरह से सहमति से था. इस मामले में अदालत ने राज्य की अपील को खारिज करते हुए आरोपी को बरी कर दिया.
पिछले फैसले और उठी हुई आवाजें
यह पहला मौका नहीं है जब किसी अदालत ने किशोरों के रोमांटिक रिश्तों पर विचार करते हुए इस तरह का फैसला सुनाया हो. इससे पहले, अक्टूबर 2023 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी यह राय व्यक्त की थी कि POCSO अधिनियम किशोरों के सहमति से बने शारीरिक संबंधों को अपराध मानने में अनावश्यक रूप से सख्त है. इसी प्रकार, 2021 में मद्रास हाईकोर्ट और फरवरी 2024 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी इस मुद्दे पर अपनी चिंता जताई थी.
निष्कर्ष
दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला युवाओं के अधिकारों को लेकर एक महत्वपूर्ण कदम है. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगर इन रिश्तों में कोई जबरदस्ती या शोषण नहीं होता, तो किशोरों को प्यार करने और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का अधिकार मिलना चाहिए. यह फैसला समाज और कानून दोनों को समझाने का प्रयास है कि युवाओं के बीच प्यार एक स्वाभाविक और महत्वपूर्ण अनुभव है, जिसे बिना किसी भय और प्रतिबंध के जीने का अधिकार होना चाहिए.
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